Friday, March 30, 2012

भारत के लिए बड़ा अवसर

दूसरे परमाणु सुरक्षा शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चार दिवसीय दक्षिण कोरिया यात्रा अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस यात्रा में उन्हें न केवल दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति ली म्यूंग बाक के साथ द्विपक्षीय बैठक करनी है, बल्कि पूरी संभावना है कि इस सम्मेलन के इतर उनकी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी के साथ भी मुलाकात होनी है। भारत की व्यापक लुक ईस्ट पालिसी को देखते हुए मनमोहन सिंह और दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति की मुलाकात का महत्व बहुत बढ़ गया है। स्पष्ट है कि भारत के लिहाज से सियोल एजेंडा एक महत्वपूर्ण कदम है, क्योंकि नई दिल्ली को क्षेत्रीय और वैश्विक पटल पर अपनी मजबूत प्रासंगिकता के संकेत देने हैं। भारत अपने घर में राजनीतिक रूप से चाहे जैसी कठिनाइयों का सामना कर रहा हो और गठबंधन की राजनीति की बाध्यताओं के कारण प्रधानमंत्री के हाथ बंधे हों, लेकिन विदेश नीति के लिहाज से यह सम्मेलन अपने साथ एक विशेष अवसर लाया है। मनमोहन सिंह की दक्षिण कोरियाई राष्ट्रपति के साथ-साथ अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के साथ मुलाकात का निष्कर्ष भारत पर गहरा असर डालेगा और यह संप्रग-2 के कार्यकाल से कहीं आगे जाएगा। भारत ने सामरिक दृष्टि से दक्षिण कोरिया पर अब तक पर्याप्त ध्यान नहीं दिया है। जब एशिया की बात आती है तो सारा ध्यान चीन और पाकिस्तान पर और कुछ हद तक जापान पर लगा दिया जाता है। भारत को अपनी लुक ईस्ट पालिसी के तहत दक्षिण कोरिया पर अधिक से अधिक ध्यान देना होगा, क्योंकि उसके पास एक बहुत प्रभावशाली राष्ट्रीय पहचान है। आज दक्षिण कोरिया विश्व की 15वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। उसकी कुल जीडीपी 1.2 खरब डालर है और मौजूदा समय प्रति व्यक्ति आय 35000 डालर है। 2016 तक इसके 40000 डालर पहुंचने के आसार हैं। दक्षिण कोरिया का मजबूत औद्योगिक आधार और उच्च तकनीकी साम‌र्थ्य को पूरे विश्व में स्वीकार किया जाता है। भारत के लिए ऐसे तमाम अवसर हैं जिससे वह दक्षिण कोरिया के साथ राजनीतिक, आर्थिक, औद्योगिक और सैन्य संपर्क स्थापित कर सकता है और इस देश की क्षमताओं से लाभान्वित हो सकता है। भारत को पूर्वी एशिया में महत्वपूर्ण अर्थव्यवस्थाओं के साथ दीर्घकालिक सहयोग कायम करने की आवश्यकता है। इस लिहाज से जापान, ताइवान और समग्र रूप सेआसियान देशों की अनदेखी नहीं की जा सकती। इन सभी संपर्को को यदि सही तरह आगे बढ़ाया जा सके तो भारत के लिए चीन सरीखे हैवीवेट का सामना करना कहीं अधिक आसान होगा। उम्मीद है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की मौजूदा सियोल बैठक दक्षिण कोरिया के साथ उन द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने का काम करेगी जिनकी नींव उस समय डाली गई थी जब राष्ट्रपति ली को जनवरी 2010 में गणतंत्र दिवस परेड के मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। सियोल हाल के वैश्विक आर्थिक संकट के समय राष्ट्रपति ली के नेतृत्व में संयत बना रहा। अमेरिका का सैन्य सहयोगी दक्षिण कोरिया खुद को एक ऐसी स्थिति में स्थापित करना चाहता है जिससे वह वैश्विक और क्षेत्रीय चुनौतियों के प्रबंधन में कहीं अधिक प्रभावशाली ढंग से योगदान दे सके। वैश्विक स्तर पर सियोल ने नवंबर 2010 में जी-20 सम्मेलन का आयोजन किया। इस सम्मेलन में मनमोहन सिंह के भाषण को ध्यान से सुना गया था। अब दक्षिण कोरिया नाभिकीय सुरक्षा पर 53 देशों के सम्मेलन का आयोजन करने जा रहा है। नाभिकीय एजेंडे पर राष्ट्रपति ओबामा की व्यक्तिगत रुचि ने इस सम्मेलन का महत्व बढ़ा दिया है। सियोल ने यह स्पष्ट कर दिया है कि मौजूदा नाभिकीय सुरक्षा सम्मेलन मुख्य रूप से गैर-सरकारी तत्वों की भूमिका औरविखंडनीय सामग्री की चोरी पर अंकुश लगाने के तरीके तलाशने पर केंद्रित है। सम्मेलन में उत्तर कोरिया के मुद्दे पर भी चर्चा होने के आसार हैं। इसी तरह ईरान द्वारा अपने नाभिकीय कार्यक्रम के जरिए उत्पन्न किया जा रहा खतरा भी एजेंडे में होगा। नाभिकीय सुरक्षा अपने आप में एक बहुत बड़ा मुद्दा होगा। इस संदर्भ में यह याद रखने की जरूरत है कि मार्च 2011 में दुनिया फुकुशिमा त्रासदी से स्तब्ध रह गई थी और भारत समेत अनेक देशनाभिकीय ऊर्जा की व्यावहारिकता के संदर्भ में अपनी दीर्घकालिक योजना पर फिर से विचार कर रहे हैं। वैश्विक समुदाय के लिए सामूहिक चिंता का विषय नाभिकीय हथियारों और लंबी दूरी की मिसाइलों का संबंध है। नाभिकीय हथियारों से संबंधित आतंकी खतरा बहुत बड़ा है। ईरान और उत्तर कोरिया के संदर्भ में अमेरिका की बेचैनी का सबसे बड़ा कारण यही है। क्या प्योंगयांग और तेहरान अमेरिका के लिहाज से नियंत्रण से और अधिक बाहर हो जाएंगे। बिल क्लिंटन के जमाने से अमेरिकी राष्ट्रपति इस जटिल चुनौती का सामना करने की कोशिश करते रहे हैं। दुर्भाग्य से भारत के लिए भी यह खतरा कम गंभीर नहीं है। अमेरिका और उसके सहयोगी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि नाभिकीय हथियारों से संबंधित आतंकवाद का खतरा एक सच्चाई न बनने पाए। इसीलिए इराक का युद्ध लड़ा गया था। अब इसकी आशंका जताई जा रही है कि इराक की तरह ईरान को निशाना बनाया जा सकता है। भारत के लिए नाभिकीय हथियार संबंधी आतंकी खतरा मई 1990 के बाद से एक वास्तविक खतरा है। मुंबई पर 2008 में हुए आतंकी हमले तथा एबटाबाद में ओसामा बिन लादेन को मार गिराने के लिए अमेरिकी अभियान के बाद पूरी दुनिया भी इस खतरे की तपिश महसूस करने लगी है। जो भी हो, अमेरिका इस आरोप से बच नहीं सकता कि उसके द्वारा अल्पकालिक हितों को तरजीह देने के कारण यह खतरा गंभीर हुआ है। पाकिस्तान के बदनाम नाभिकीय वैज्ञानिक अब्दुल कादिर खां द्वारा उत्तर कोरिया को किया गया नाभिकीय प्रसार इसकी मजबूत बानगी है। यह हैरत की बात है कि पाकिस्तान की सेना भी इस हकीकत पर पर्दा डाले रही। इस बिंदु पर ही मनमोहन सिंह और गिलानी की बैठक महत्वपूर्ण हो जाती है। अपने-अपने देश की घरेलू स्थिति के बावजूद दोनों नेताओं को भारत-पाकिस्तान संबंधों को स्थिर बनाने के अपने दीर्घकालिक एजेंडे पर ध्यान बनाए रखने की जरूरत है। 

स्त्रीत्व के अवमूल्यन का खतरा

--राजकिशोर केंद्र


सरकार ने विवाह कानून में कुछ सुधार प्रस्तावित कर उसे आधुनिक समय के अनुकूल बनाया है। इसका स्वागत किया जाना चाहिए। सच तो यह है कि कानून में ये संशोधन बहुत पहले हो जाने चाहिए थे। ऐसा लगता है कि सामाजिक सुधार के मामले में सरकार की सक्रियता बनी हुई तो है, लेकिन प्रक्रिया धीमी है और परिणाम बहुत देर से आते हैं। फिर भी देर आयद दुरुस्त आयद। विवाह कानून में केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत दो परिवर्तन भारत के लिए क्रांतिकारी महत्व के हैं। आपसी रजामंदी से तलाक के लिए आवेदन को मान्यता एक ऐसा ही क्रांतिकारी कदम था, लेकिन इसमें एक पेच बचा रह गया था। जब दांपत्य जीवन में ऐसा गतिरोध आ जाए, जिसे किसी भी तरह दूर नहीं किया जा सकता और पति-पत्नी में से कोई एक पक्ष दूसरे पक्ष को मुक्त न करना चाहे, तब-तब दूसरे पक्ष के पास मुक्ति का कोई उपाय नहीं था। आपसी सहमति से तलाक की व्यवस्था में एक शालीनता है। पति या पत्नी को एक-दूसरे पर आरोप लगाना नहीं पड़ता। वे अदालत में सिर्फ यह कहते हैं कि अब हम साथ-साथ नहीं रह सकते और हमारे वैवाहिक संबंध को कानून द्वारा भंग कर दिया जाए। लेकिन जब कोई एक पक्ष इसके लिए राजी न हो और दूसरे पक्ष को नष्ट दांपत्य के कीचड़ में लिथड़ते रहने को बाध्य कर दे, तब दूसरे पक्ष के पास निजात पाने का परंपरागत रास्ता ही बचा रहता है। यानी अपने जीवन साथी पर आरोप लगाना, वे आरोप जिनके आधार पर तलाक मिल सकता है। नया कानून इस बाध्यता से छुटकारा दिलाता है। अब कोई भी एक पक्ष अदालत जाकर कह सकता है कि हमारे वैवाहिक जीवन में ऐसा गतिरोध आ गया है, जिसका कोई हल नहीं है। इसलिए अदालत विवाह विच्छेद का आदेश जारी करे। लेकिन पता नहीं क्यों, अब भी हमारे कानून निर्माताओं में स्त्री पक्ष के प्रति एक अतार्किक सहानूभूति बनी हुई है, जिसके कारण लोकतांत्रिक समाधानों में बाधा आती है। मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत संशोधन में यह प्रावधान मौजूद है कि स्त्री अगर असमाधेय गतिरोध के आधार पर तलाक चाहती है तो पुरुष उसका विरोध नहीं कर सकता। स्त्री की व्याख्या को स्वीकार कर लिया जाएगा। लेकिन अगर पुरुष इसी आधार पर तलाक की याचना करे तो स्त्री उसका विरोध कर सकती है। वह यह दावा कर सकती है कि विवाह में कोई ऐसा गतिरोध पैदा नहीं हुआ है, जिसका समाधान संभव नहीं है। यह प्रावधान संभवत: नारीवादी संगठनों की मांग पर जोड़ा गया होगा, लेकिन स्त्री को हमेशा कमजोर मानकर चलने की प्रवृत्ति अंतत: स्त्रीत्व का ही अवमूल्यन करती है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जब यह संशोधन विधेयक संसद में विचार के लिए आएगा, तब इस कमी को दूर कर दिया जाएगा। इतना ही महत्वपूर्ण, बल्कि इससे कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण संशोधन यह लाया जा रहा है कि तलाक की स्थिति में पत्नी को पति की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। यह एक बहुत ही जरूरी संशोधन है, जो अरसे से स्थगित चला आ रहा था। पति-पत्नी के बीच समानता की हैसियत तभी पूरी हो सकती है, जब विवाह के भीतर दोनों की आर्थिक स्थिति बराबर हो। अभी तक खबर थी कि वैवाहिक जीवन में ही पारिवारिक संपत्ति पर दोनों का आधा-आधा हक होगा, जैसा कि गोवा के कानून में है। अब ऐसा लग रहा है कि सरकार ने यह विचार त्याग दिया है। अब केवल तलाक की स्थिति में ही पत्नी को पति की या पति को पत्नी की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। इस बदलाव का कोई तार्किक आधार नहीं है। जो अधिकार वैवाहिक जीवन में नहीं है, वह तलाक के समय अचानक कैसे प्रकट हो जा सकता है। यह भी मुनासिब नहीं लग रहा है कि तलाक की हालत में पत्नी को पति की संपत्ति में कितना हिस्सा मिलेगा, यह फैसला अदालत पर छोड़ दिया गया है। अदालत की इस भूमिका से पेचीदगी पैदा होना अनिवार्य है। तलाक के निर्णय पर पहुंचने के पहले पत्नी तय नहीं कर सकती कि विवाह विच्छेद के बाद उसकी आर्थिक हैसियत क्या होगी। इस अस्पष्टता से उसे उचित निर्णय तक पहुँचने में दिक्कत हो सकती है। बेहतर है कि संसद ही इस अनुपात को तय कर दे। लोकतंत्र की मांग तो यही है कि 50:50 ही संपत्ति विभाजन का मूल आधार हो। यह अदालत पर जरूर छोड़ा जा सकता है कि भविष्य में किस पक्ष के कंधों पर कितनी आर्थिक जिम्मेदारी आ रही है। इसे ध्यान में रखते हुए वह संपत्ति विभाजन के इस फार्मूले में कुछ फेरबदल कर सकती है। व्यावहारिकता भी यही कहती है, लेकिन अगर सब कुछ अदालत पर छोड़ दिया जाता है तो पत्नी में वैवाहिक जीवन के दौरान बराबरी का वह एहसास पैदा नहीं हो सकता, जो 50:50 के प्रावधान से अपने आप आ जाता है। संपत्ति के विभाजन जितना ही महत्वपूर्ण पक्ष है, गुजारे की व्यवस्था। यह एक जटिल मामला है। आज तक मेरी समझ में नहीं आया कि जब पति-पत्नी दोनों कमा रहे हों तो तलाक के बाद पत्नी को गुजारे की रकम क्यों मिलनी चाहिए। न तो पति बनकर कोई पत्नी पर एहसान करता है, न पत्नी बन कर कोई पति पर एहसान करती है। कायदे से सब को अपनी रोटी खुद कमानी चाहिए। समाज में जब तक ऐसी स्थितियां नहीं आ जातीं, तब तक आर्थिक दृष्टि से कमजोर पक्ष को राहत मिलनी चाहिए। लेकिन यह राहत उम्र भर के लिए नहीं हो सकती। इस दृष्टि से यह प्रस्तावित बदलाव स्वागत योग्य है कि तलाक की हालत में पत्नी-पत्नी के बीच आर्थिक समझौता हो सकता है। इससे एक ही बार में मामला निपट जाएगा। प्रस्तावित संशोधन में इसकी भी व्यवस्था है।

छह साल का ट्विटर

--पीयूष पांडे


21 मार्च, 2006 को जैक डॉर्सी ने एक संदेश लिखा था। संदेश था-जस्ट सेटिंग अप माई ट्विटर। उस वक्त जैक डॉर्सी को इस बात का कतई अंदाज नहीं होगा कि 140 अक्षरों के संदेश यानी ट्वीट भविष्य में सोशल मीडिया की दुनिया में एक नई क्रांति का सूत्रपात करेगा। ट्विटर साइट अब छह साल की हो गई है। दुनिया में 20 करोड़ से ज्यादा लोग ट्विटर का इस्तेमाल कर रहे हैं। माइक्रोब्लॉगिंग साइट के रूप में लोकप्रिय ट्विटर आज फेसबुक के बाद सबसे ज्यादा चर्चित सोशल नेटवर्किग साइट है। बराक ओबामा, दलाई लामा, अमिताभ बच्चन और सचिन तेंदुलकर जैसी दुनिया की सैकड़ों नामचीन हस्तियां इस साइट का इस्तेमाल कर रही हैं। ट्विटर ने लोगों को जोड़ने का काम किया और मिस्त्र जैसी क्रांति के दौरान संदेश प्रसारित करने का काम किया, लेकिन गत दो साल में ट्विटर इस्तेमाल के अलग-अलग आयाम सामने आए हैं। आज बीमार सेलेब्रिटी अपने हेल्थ बुलेटिन को ट्विटर पर प्रसारित कर रहे हैं। हाल में अमिताभ बच्चन और युवराज सिंह को ऐसा करते देखा गया। इसी तरह उपभोक्ता सीधे कंपनियों तक अपनी बात पहुंचाने के लिए ट्विटर का इस्तेमाल कर रहे हैं। सेलेब्रिटी ट्विटर जंग लड़ रहे हैं और मीडिया तक अपनी बात पहुंचाने के लिए इस साइट का जमकर इस्तेमाल कर रहे हैं। नि:संदेह ट्विटर की उपयोगिता को खारिज नहीं किया जा सकता लेकिन छह साल पूरे होने के मौके पर यह सवाल पूछा जाना चाहिए कि क्या इस साइट का भारत में सही इस्तेमाल हो रहा है? भारत में ट्विटर के सवा करोड़ के आसपास उपयोक्ता हैं, लेकिन आम लोग इससे अभी भी दूर हैं। एक अनुमान के मुताबिक भारत के कुल ट्विटर उपयोक्ताओं में से एक तिहाई ही सक्रिय हैं। भारत में ट्विटर के खाताधारकों के औसत फॉलोवर्स की संख्या बीस से ज्यादा नहीं है। इसका मतलब यह है कि उनके लिखे को बीस से ज्यादा लोग नहीं पढ़ते। इनमें भी कई सक्रिय नहीं होते। दूसरी तरफ कई सेलेब्रिटी के ट्विटर एकाउंट के फॉलोवर्स की संख्या लाखों में है। अमिताभ बच्चन को लें तो ट्विटर पर उनके चाहने वालों की संख्या 23 लाख से ज्यादा है। इसी तरह सचिन तेंदुलकर के ट्विटर पर फॉलोवर्स 21 लाख से ज्यादा हैं, लेकिन ट्विटर सेलेब्रिटी को छोड़ दें तो अधिकांश ट्विटर उपयोक्ता इस साइट का इस्तेमाल कुछ कहने के बजाय सुनने के लिए कर रहे हैं। दरअसल भारत में शुरुआती दौर से ट्विटर उच्चवर्ग के मीडिया के रूप में कुछ ऐसा प्रचारित हुआ कि आम इंटरनेट उपयोक्ताओं ने इससे कुछ दूरी रखी। आंकड़ों के आइने में तो फेसबुक साढ़े चार करोड़ की तुलना में ट्विटर बहुत पीछे है। फिर ट्विटर कुछ इस तरह अंग्रेजीदां हुआ है कि हिन्दी व अन्य क्षेत्रीय भाषाओं के ट्वीट लगभग न के बराबर हैं। ट्विटर को भी इस बात का अहसास है कि बिना हिंदी भाषियों के बीच पैठ बनाए बिना भारत में उसे लोकप्रियता नहीं दिलाई जा सकती। इसीलिए ट्विटर ने गत 14 सितंबर से हिंदी संस्करण लांच किया। यानी अब ट्विटर उपयोक्ताओं के लिए हिंदी में भी इंटरफेस उपलब्ध है। सरल शब्दों में हिंदी इंटरफेस का अर्थ यह कि ट्विटर पर खाता खोलने से लेकर उसके प्रयोग से जुड़ी तमाम जानकारियां अब ट्विटर पर देवनागरी लिपि में लिखी दिखाई देंगी। वैसे यह कहना गलत नहीं है कि ट्विटर का प्रचार अभी तक इंटरनेट के जिस वर्ग के बीच सबसे अधिक है उसे अंग्रेजी पढ़ने-लिखने में कतई दिक्कत नहीं है। ट्वीट लिखना अपने आप में एक कला है और इस कला को सहज बनाने के लिए गढ़ा गया नया वाक्य विन्यास फिलहाल अंग्रेजी में ज्यादा है। अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, सचिन तेंदुलकर, प्रियंका चोपड़ा, युवराज सिंह, सुषमा स्वराज और मनोज बाजपेयी जैसे लोगों की हिंदी भी अच्छी है, लेकिन इनके ट्वीट हिंदी में ज्यादा नहीं दिखते। देवनागरी में तो इक्का-दुक्का ही हैं। बहरहाल, 140 अक्षरों की ताकत का इस्तेमाल सही तरीके से हो, इस बारे में अब सोचा जाना चाहिए।

गरीबों के साथ धोखाधड़ी

(निर्धन आबादी के संदर्भ में योजना आयोग के ताजा आंकड़ों का खोखलापन उजागर कर रहे हैं डॉ. विशेष गुप्ता)


गरीबी निर्धारण के तौर-तरीकों पर नए सिरे से फजीहत का सामना करने के बाद केंद्र सरकार विशेषज्ञों का एक समूह गठित करने जा रही है, जो गरीबी रेखा के मानक निर्धारित करने के मौजूदा मानदंडों की समीक्षा करेगा। दरअसल योजना आयोग ने गरीबों की घटती तादाद को लेकर जो ताजा आंकड़े प्रस्तुत किए हैं उससे एक बार फिर देश में कोहराम मच गया है। इन आंकड़ों से ऐसा जाहिर होता है जैसे योजना आयोग गरीबी की वास्तविकता से मुंह मोड़ रहा है। योजना आयोग के द्वारा गरीबी से जुड़े जो आंकड़े प्रस्तुत किए गए हैं उसमें कहा गया है कि देश में गरीबों की तादाद घट रही है। इस संबंध में योजना आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2004-2005 में भारत में गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली आबादी जो 37.2 फीसदी थी वह 2009-2010 में घट कर 29.8 रह गई है। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का अनुपात 8 फीसदी घटकर 41.8 फीसदी की जगह 33.8 फीसदी पर तथा शहरी इलाकों में 5 साल पहले जो गरीबी 25.7 फीसदी थी वह अब 4.8 फीसदी घटकर 20.9 फीसदी पर आ गयी है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि सरकारी आंकड़ों के आधार पर अब देश के गांव में हर तीन में से एक व्यक्ति गरीब है, जबकि नगरों में थोड़ी बेहतरी के साथ वहां हर 5 में से एक व्यक्ति गरीबी की श्रेणी में आता है। योजना आयोग ने गरीबी से जुड़े आंकड़ों से भी एक कदम आगे बढ़कर लोगों की आमदनी के आधार पर गरीबी का जो पैमाना विकसित किया है वह निश्चित ही जमीनी हकीकत से कोसों दूर है। उसमें स्पष्ट कहा गया है कि शहर में प्रतिदिन 28.65 रुपये और गांव में 22.42 रुपये खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। योजना आयोग ने इसी पैमाने के आधार पर माना है कि देश में गरीबी घट गई है। जरा स्मरण करें इसी संप्रग सरकार ने सितंबर 2011 में सुप्रीम कोर्ट में जो हलफनामा प्रस्तुत किया था उसमें स्पष्ट कहा गया था कि शहरों में प्रतिदिन 32 रुपये और गांव में 26 रुपये खर्च करने वाले को गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों को मिलने वाली सुविधाएं लेने का अधिकार नहीं है। उस समय भी गरीबी मापने के इस पैमाने को अव्यावहारिक बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी योजना आयोग को लताड़ लगाई थी। सरकार को इस विषय में कई सफाई देनी पड़ी थीं। इसके बावजूद भी योजना आयोग ने गरीबी मापने का जो पैमाना प्रस्तुत किया है वह पहले से अधिक अतार्किक और हास्यास्पद जान पड़ता है। आज योजना आयोग द्वारा प्रस्तुत गरीबी से जुड़े आंकड़ों के साथ-साथ गरीबी रेखा निर्धारण की भी बहुत आलोचना हो रही है। उसका कारण भी साफ है कि देश के कई जाने-माने अर्थशास्त्री यह मानते हैं कि 70 के दशक में गरीबी रेखा का पहली बार निर्धारण करते समय एक सामान्य भारतीय के लिए जितनी कैलोरी का भोजन जरूरी माना गया था अब गरीबी रेखा के स्तर पर रहते हुए उससे भी काफी कम कैलोरी मिल रही है। ग्रामीण इलाकों में कैलोरी की यह गिरावट आठ फीसदी तथा शहरी क्षेत्रों में यह तीन फीसदी रही है। इसलिए यहां इस कड़वे सच को कहने में कोई हिचक नहीं कि भारत में गरीबी रेखा अब धीरे-धीरे भुखमरी की रेखा बनकर उभर रही है। अनुमान लगाया जा सकता है कि हमारे आज के योजनाकार आखिर किस विरोधाभासी युग में जी रहे हैं और आखिर कौन सी उनको यह मजबूरी है? गरीबी के इन आंकड़ों में क्षेत्रीय असमानताएं भी बहुत अधिक उजागर हुई हैं। गरीबी के मामले में कुछ राज्यों में हालात सुधरने का नाम नहीं ले रहे हैं। प्रदेशों के स्तर पर गरीबी से जुड़ी क्षेत्रीय असमानताओं से साफ संकेत मिलते हैं कि उत्तर प्रदेश, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में गरीबी नहीं घटी है। इन आंकड़ों में पूर्वोत्तर भारत की दशा तो और भी बदतर रही है। इससे भी अधिक चिंताजनक मामला दिहाड़ी के मजदूरों से जुड़ा है। आज यह गंभीर चिंतन का विषय है कि गांव व शहर के गरीबों के लिए अनेक योजनाओं के संचालन के बावजूद भी देश की आजादी के बाद गरीबों के आंकड़ों में कोई बहुत भारी कमी नहीं आई है। ऐसा लगता है कि देश के योजनाकारों ने गरीबी मापन का जो स्केल तैयार किया है उसमें गरीबी को मापने की जगह गरीबी को छिपाने का प्रपंच अधिक है। 2004-2005 में योजना आयोग ने कहा था कि देश में केवल 27 फीसदी लोग गरीब हैं। 2009 में सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता वाली समिति ने कहा कि 37 फीसदी गरीब हैं। इसी बीच अर्जुन सेनगुप्ता की एक अन्य समिति ने अपनी रिपोर्ट में कुल आबादी के 78 फीसदी हिस्से के गरीब होने का अनुमान प्रस्तुत किया था। इसके बाद एनसी सक्सेना की अध्यक्षता वाली समिति ने 56 फीसदी आबादी को गरीबी की श्रेणी में रखा था। अब योजना आयोग ने 2009-2010 के अंाकड़ों के आधार पर गरीबी का अनुपात घटाकर 29.8 फीसदी रहने का अनुमान जारी किया है। यह 21वीं सदी की चमचमाती दुनिया का विद्रूप चेहरा ही कहा जाएगा कि जहां एक ओर आक्रामक उपभोग का विस्फोट है तो दूसरी ओर अभावग्रस्त जीवन फटेहाल जिंदगी जीने को मजबूर है। आज अधिकतर लोग गरीबी की श्रेणी में इसलिए हैं, क्योंकि उनका वास्तविक हक उन्हें नहीं मिल पा रहा है। भारत की गरीबी की समस्या का हल केवल गरीबी से जुड़े आंकड़ों पर ध्यान केंद्रित करने से नहीं हो सकता। यहां मुख्य प्रश्न गरीब और अमीर के बीच संसाधनों में गैर-बराबरी और असमान वितरण से जुड़ा है। इसलिए हमें देश में लगातार बढ़ रही अमीरी पर भी सवाल उठाने होंगे। तभी हम गरीबी दूर करने की अपनी प्राथमिकता पूरी कर सकते हैं।

सही दिशा में छोटा कदम

इस बजट का मूल दर्शन समझने की जरूरत है। वित्त मंत्री ने सेवा शुल्क एवं एक्साइज ड्यूटी में वृद्धि की है। इससे एक ओर तत्काल महंगाई बढ़ेगी, क्योंकि हर एक वस्तु के दाम बढ़ेंगे। दूसरी ओर सरकार की आय भी बढ़ेगी और सरकार का वित्तीय घाटा कम होगा। वित्तीय घाटा कम होने से सरकार को रिजर्व बैंक से कम ऋण लेना होगा। रिजर्व बैंक को कम नोट छापने होंगे। नोट कम छापने से आगामी समय में महंगाई थमेगी। यानी सरकार की रणनीति है कि तत्काल महंगाई को बढ़ने दो, लेकिन दीर्घकाल में इसे नियंत्रित कर लो। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार 2014 के चुनाव की तैयारी कर रही है। सोच है कि अगले वर्ष तक लोग टैक्स में इस वृद्धि को भूल जाएंगे। 2013 का बजट चुनावी होगा। उस समय सरकार की आय ठीकठाक होगी और सरकार मनरेगा जैसे लोक-लुभावन कार्यक्रम लाकर पुन: 2014 के चुनाव को जीत सकती है। यही स्थिति विकास दर की है। टैक्स बढ़ाए जाने से तत्काल कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा। माल महंगा होगा और उन्हें बिक्री करने में कठिनाई होगी, परंतु यह अल्पकाल की बात है। वित्तीय घाटे पर नियंत्रण होने से देश की मुद्रा स्थिर हो सकती है। ऐसे में विदेशी निवेश के आने की संभावना बनती है। यदि विदेशी निवेश आता है तो आर्थिक विकास पुन: चल पड़ेगा। तत्काल विकास दर में जो गिरावट आएगी वह दीर्घकाल में लाभकारी हो जाएगी। आर्थिक विकास में वृद्धि की संभावना दो और कारणों से बनती है। बजट में बुनियादी ढांचे में लगी भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी निवेशकों को बांड बेचना आसान बना दिया गया है। इसके अलावा बुनियादी ढंाचे में निवेश के लिए टैक्स फ्री बांड की सीमा 30,000 करोड़ से बढ़ाकर 60,000 करोड़ कर दी गई है। इन बांडों के माध्यम से हाईवे, बंदरगाह एवं विद्युतीकरण के लिए और अधिक मात्रा में पूंजी उपलब्ध हो जाएगी। इससे भी विकास दर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। अत: सरकार की रणनीति है कि तत्काल महंगाई में वृद्धि और विकास दर में कटौती बर्दाश्त करके अगले वर्ष के लोकप्रिय बजट के लिए गुंजाइश बना ली जाए। राजनीतिक दृष्टि से यह ठीक ही दिखता है, परंतु खतरा है कि टैक्स में वृद्धि के बावजूद वित्तीय घाटे का नियंत्रण में आना जरूरी नहीं है। सब्सिडी का भार बढ़ता जा रहा है। सरकारी खर्चो में कटौती के संकेत नहीं हैं। वित्तीय घाटे के नियंत्रण में न आने पर सरकार को दोहरा घाटा लग सकता है। वर्तमान में महंगाई बढ़ने के साथ-साथ आने वाले समय में भी महंगाई बढ़ती जाएगी। वित्तीय घाटे के नियंत्रण में आने के बावजूद विदेशी निवेश आना जरूरी नहीं है और विकास दर न्यून बनी रह सकती है। अत: कुल खेल वित्तीय घाटे के नियंत्रित होने एवं उसका विदेशी निवेश पर सार्थक प्रभाव पड़ने का है। सरकार के वित्तीय स्वास्थ्य पर सबसे बड़ी मार सब्सिडी की है। खाद्य पदार्थ, फर्टिलाइजर, केरोसिन एवं एलपीजी पर सरकार को भारी मात्रा में सब्सिडी देनी पड़ रही है। वर्तमान में सब्सिडी का लाभ लाभार्थी को कम और कंपनी तथा सरकारी नौकरशाही को अधिक मिल रहा है। फर्टिलाइजर सब्सिडी का लाभ निर्माता कंपनियों को होता है। इस समस्या के निदान के लिए वित्त मंत्री ने सब्सिडी को आईटी के माध्यम से चुस्त करने की योजना बनाई है। झारखंड में राशन कार्ड के सत्यापन के लिए आधार योजना का उपयोग किया जा रहा है। एलपीजी सब्सिडी को सीधे लाभार्थी के खाते में जमा करने का प्रयास मैसूर में किया जा रहा है। अल्वर जिले में केरोसिन सब्सिडी को सीधे लाभार्थी के खाते में जमा कराने का प्रयास किया जा रहा है। इन प्रयोगों का विस्तार 50 जिलों में इस वर्ष करने की योजना है। सब्सिडी को सीधे लाभार्थी तक पहुंचाने से सरकार पर वित्तीय भार कम पड़ेगा और साथ ही रकम के लाभार्थी के पास पहुंचने से सत्तारूढ़ पार्टी को राजनीतिक लाभ भी हासिल होगा। इसी क्रम में फर्टिलाइजर पर दी जा रही सब्सिडी पर निगाह रखने का प्लान बनाया जा रहा है। फर्टिलाइजर का मूवमेंट निर्माता से रिटेल विक्रेता तक कंप्यूटर द्वारा देखा जाएगा। आगे चलकर इसे किसान तक पहुंचाने पर भी निगाह रखी जा सकती है। इस कार्यक्रम से भी सरकार पर सब्सिडी का भार कम होगा और किसान को लाभ होगा। ये कदम सही दिशा में हैं। फिर भी मेरा मानना है कि सब्सिडी के मुद्दे पर सरकार द्वारा आक्रामक रुख अपनाया जा सकता था। सभी तरह की सब्सिडी को लाभार्थी तक पहुंचाने की कवायद में सरकार लगी है। इस पूरे झंझट को एक झटके में समाप्त करके पूरी रकम को नागरिकों के बैंक खाते में जमा करा देना चाहिए। किसान को फर्टिलाइजर का जो ऊंचा दाम देना होगा उसकी भरपाई के लिए खाद्यान्न के दाम में वृद्धि सुनिश्चित करनी चाहिए। सब्सिडी हटाने से आम आदमी पर जो भार पड़ेगा उससे ज्यादा रकम उसे सीधे नगद वितरण से मिल जाएगी। वास्तव में यह नगद वितरण स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर दी जा रही सब्सिडी पर भी लागू किया जा सकता है। मेरी दृष्टि में यह बजट सही दिशा में छोटा कदम है। सेवा कर एवं एक्साइज ड्यूटी को बढ़ाना उचित ही है। बजट की मुख्य कमी है कि सरकार के अनुत्पादक खर्च विशेषकर कर्मियों की संख्या, वेतन एवं पेंशन पर नियंत्रण के बारे में नहीं सोचा गया है। इस बजट में संकट है कि वित्तीय घाटे का नियंत्रण में आना जरूरी नहीं है, वित्तीय घाटे के नियंत्रण में आने के बावजूद निवेश में वृद्धि जरूरी नहीं है और निजी निवेश में वृद्धि का लाभ आम आदमी तक पहुंचना जरूरी नहीं है। इन कड़ी में से एक भी टूट गई तो यह बजट सत्तारूढ़ पार्टी के लिए हानिकारक सिद्ध होगा और जनता को महंगाई का खामियाजा भुगतना होगा।

प्राकृतिक संपदा का दोहन

(रेत माफियाओं की मनमानी पर महेश परिमल के विचार )


हमारी धरती रत्नप्रसविनी है। इसे हम सभी जानते हैं, ¨कतु कुछ लोग इसे और भी अधिक अच्छी तरह से जानते हैं। इसलिए वह लगातार खनिजों का दोहन कर न केवल रुतबेदार,बल्कि बलशाली भी होने लगे हैं। कर्नाटक के रेड्डी बंधुओं के बाद अब मध्य प्रदेश भी माफियाओं की चपेट में आ गया है। रेड्डी बंधुओं ने 80 लाख टन खनिज की चोरी कर सरकार को करीब 2,800 करोड़ रुपये की कमाई की। उधर मध्य प्रदेश में रेत माफिया एवं खनिज माफिया ने कितने वर्षो में कितने की कमाई की इसका आकलन नहीं किया जा सका है। पर सच तो यह है कि ये माफिया इतने अधिक बलशाली हैं कि विरोधी स्वर को तुरंत खामोश कर देते हैं। उन्हें प्रदेश के नेताओं का वरदहस्त प्राप्त है इसलिए वे बेखौफ हैं। प्रदेश में लगातार पुलिस बल पर हमले हो रहे हैं, होली के दिन एक आला पुलिस अधिकारी की ट्रैक्टर से कुचलकर हत्या कर दी गई। यही नहीं इस तरह की घटनाएं सामने आती ही रहती हैं। हाल में शिवपुरी में एक और मामला सामने आया है जिससे पता चलता है कि खनन माफियाओं के हाथ कितने लंबे हैं। जमीन से कीमती खनिज और नदी के किनारों से रेत की चोरी करने वाले माफिया राजनेताओं के मौन समर्थन से इतने अधिक बलशाली हो गए हैं कि किसी की हत्या करना उनके लिए अब बाएं हाथ का काम हो गया है। आइपीएस अफसर नरेंद्र कुमार सिंह की हत्या गत 8 मार्च को मुरैना जिले में कर दी गई। उसके बाद एक और आइपीएस अधिकारी पर शराब माफिया ने हमला किया। 11 मार्च को ही तमिलनाडु के तिरुनेगई जिले में अवैध रूप से ले जाई जा रही रेत के खिलाफ युवाओं की भीड़ में से एक युवा को एक ट्रक ने रौंद दिया। इस तरह से पूरे देश में रेत माफिया, जंगल माफिया और खनन माफिया का दबदबा बढ़ रहा है। खनन माफियाओं की कार्यशैली बहुत सरल होती है। वे सरकार पर अपने रसूख का उपयोग कर और नेताओं को रिश्वत देकर नदी किनारे एक छोटे से क्षेत्र में रेत खनन का लाइसेंस लेते हैं। फिर इस लाइसेंस का दुरुपयोग कर वे नदी से बेखौफ रेत का खनन करने लगते हैं। नदी से जो ट्रकें रेत भरकर बाहर जाती हैं उसमें से दस प्रतिशत ट्रकों का ही रिकॉर्ड कागजों पर होता है। बाकी ट्रकों पर अधिकारियों, नेताओं, पुलिस आदि का हिस्सा होता है। सरकारी तिजोरी में इसकी बहुत ही कम राशि आती है। मध्य प्रदेश के होशंगाबाद में शिवा कार्पोरेशन को नर्मदा किनारे तीन गांवों की कुल 12 हेक्टेयर जमीन पर रेत खनन की अनुमति मिली थी। किंतु ठेकेदार ने करीब 86 हेक्टेयर जमीन पर रेत का खनन शुरू कर दिया। एक कांग्रेसी नेता की मानें तो यहां अवैध रूप से रेत खनन से सरकार को हर वर्ष 700 करोड़ रुपये की हानि होती है। आखिर इन रेत माफियों को पालने वाला भी तो कोई होगा। आखिर ये किसके दम पर इतना गरजते हैं? हाल ही में गोवा में जो विधानसभा चुनाव हुए उसमें अवैध रूप से हो रहे खनिज माफिया के खिलाफ लड़ाई को ही मुख्य मुद्दा बनाया गया। गोवा की पूर्व सरकार ने खनिज माफियाओं को पूरी छूट दे रखी थी, इसीलिए वहां 7 हजार करोड़ रुपये का घोटाला हुआ। यह आरोप भाजपा ने लगाया था। इसी आरोप को सामने रखकर भाजपा ने वहां जीत भी हासिल की। गोवा की तरह कर्नाटक के बेल्लारी जिले में अवैध रूप से खनन करने वाले रेड्डी बंधुओं को समर्थन दिए जाने के कारण येद्दयुरप्पा को मुख्यमंत्री पद से हाथ धोना पड़ा था। कर्नाटक की तरह आंध्र प्रदेश में वहां की सरकार पर खनिज माफियाओं को राजनीतिक संरक्षण देने का आरोप लगाया जा रहा है। चूंकि वहां सरकार कांग्रेस की है इसलिए इसकी जांच नहीं हो रही है। पंजाब में अकाली दल-भाजपा सरकार ने रेत की नीलामी में पारदर्शिता लाने के लिए ई-ऑक्शन की परंपरा शुरू की है पर इसमें भी रेत माफियाओं ने मैदान मार लिया। कुल मिलाकर स्थिति काफी खराब है।

Tuesday, March 20, 2012

बेचैनी बढ़ाता बीजिंग

(लगातार रक्षा खर्च बढ़ा रहे चीन की सैन्य तैयारियों से एशिया में चिंताएं बढ़ती देख रहे हैं हर्ष वी पंत)


एक और साल और पहले से भी बड़ा चीनी रक्षा बजट! एक बार फिर चीन ने अपने सैन्य खर्च में दहाई अंकों की बढ़त की है। इससे चीन की मंशा को लेकर चिंता बढ़ गई है। बीजिंग ने घोषणा की है कि 2012 के लिए उसका रक्षा बजट पिछले साल 95.6 अरब डॉलर से बढ़कर इस साल 106 अरब डॉलर हो गया है। यह 11.2 फीसदी की बढ़ोतरी है। इस राशि में चीनी सेना के कई बड़े खर्चो का समावेश नहीं है। इनमें साइबर युद्ध व अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाने के साथ-साथ विदेशी साजोसामान की खरीदारी शामिल नहीं है। इस बढ़ी हुई राशि का मोटा भाग चीनी नौसेना, वायुसेना और दूसरी सैन्य टुकडि़यों के खाते में गया है, जो सामरिक परमाणु सेनाओं को संचालित करती हैं। सैन्य बजट की घोषणा करने वाले नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के प्रवक्ता के अनुसार, सैन्य खर्च में वृद्धि चीनी आर्थिक विकास के अनुरूप है। चीन के सकल घरेलू उत्पाद और सैन्य खर्च में अनुपात अमेरिका और ब्रिटेन जैसे अन्य विकसित देशों की तुलना में अब भी काफी कम है। उनकी दलील है कि चीन शांतिपूर्ण विकास के पथ पर चलने को प्रतिबद्ध है और ऐसी रक्षा नीति का पालन कर रहा है, जिसकी प्रकृति शांतिपूर्ण है। एक उभरती हुई शक्ति चीन पिछले दशक से सैन्य शक्ति को बढ़ाने में जुटा हुआ है ताकि वह अपने सामरिक हितों की सुरक्षा और विस्तार कर सके। 23 लाख सैनिकों वाली विश्व की सबसे बड़ी सेना रखने वाला चीन अपनी परमाणु शक्ति में नाटकीय सुधार कर रहा है। साथ ही वह परंपरागत सैन्य क्षमताओं को और अधिक प्रभावी बना रहा है। चीन की सैन्य मजबूती एशिया और उसके परे बढ़ती चिंता का कारण बनी हुई है। इस पर पूरा विश्व एकमत है कि बीजिंग का असल रक्षा बजट घोषित बजट से करीब दो गुना अधिक है। चीनी सरकार के आधिकारिक आंकड़ों में नए हथियारों की खरीद, अनुसंधान और चीन की बेहद गोपनीय सेना के लिए अन्य बड़ी खरीदारियों का उल्लेख नहीं होता। परिणामस्वरूप, रक्षा बजट की असल राशि घोषित राशि से कहीं अधिक होती है। अनुमान है कि पिछले साल ही चीन ने घोषित 95.6 अरब डॉलर से कहीं अधिक 160 अरब डॉलर अपनी रक्षा पर खर्च किए हैं। चीन अपनी सैन्य क्षमताओं में सुधार का बचाव इस दलील के आधार पर करता है कि उसे ताइवान संबंधी आपात स्थिति के मद्देनजर अपनी आक्रामक क्षमताओं का विकास करने की जरूरत है, किंतु यह तो महज बहाना है। स्पष्ट तौर पर उसकी नजरें अमेरिका पर गड़ गई हैं। चीन पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य क्षमता को सीमित करना चाहता है। वह 1996 की उस शर्मिदगी की पुनरावृत्ति से बचना चाहता है, जब अमेरिकी नौसैनिक बेड़ा चीन के उकसावे की परवाह न करता हुआ ताइवान की खाड़ी से होकर गुजरा था। इसमें हैरत नहीं है कि सीमा से परे आक्रामक क्षमताओं के विस्तार के साथ चीन द्वारा सेना को लगातार मजबूत करने से अमेरिका और चीन के पड़ोसियों की बेचैनी बढ़ती जा रही है। चीन सेना पर खर्च में ऐसे नाजुक समय में बेहिसाब बढ़ोतरी कर रहा है जब जापान, भारत और दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के साथ सीमा विवाद पर उसका रुख आक्रामक हो रहा है। ओबामा प्रशासन बीजिंग से मांग कर रहा है कि वह सेना बजट में पारदर्शिता लाए और दोनों देशों की सेनाओं के बीच संपर्क को और गहरा करे। चीन के उपराष्ट्रपति जी जिनपिंग की हालिया अमेरिकी यात्रा पर यह मांग फिर से दोहराई गई है। जी जिनपिंग को ही चीन का अगला नेता माना जा रहा है। चीनी रक्षा नीति की बेहतर समझ के लिए अमेरिका सामरिक सुरक्षा वार्ता के नाम से चीन के साथ औपचारिक बातचीत कर रहा है, किंतु अभी तक इसके उत्साहजनक परिणाम नहीं निकले हैं। इस वार्ता में बीजिंग और वाशिंगटन के वरिष्ठ नागरिक और सैन्य अधिकारी भाग लेते हैं। चीन का वृहद गोपनीय सैन्य आधुनिकीकरण कार्यक्रम अनुमान से अधिक तेजी से परिणाम दे रहा है। चीन प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य ताकत को चुनौती देने की तैयारी कर रहा है। चीन सोवियत युग के यूक्रेनियाई एयरक्राफ्ट कैरियर के पुनर्निर्माण के बाद इसे अगले साल तक पानी में उतारने का इरादा रखता है। शंघाई के निर्माण स्थल में और भी कैरियर्स पर काम चल रहा है। चीन का नौसैनिक बेड़ा एशिया में सबसे बड़ा है। वह तेजी से परमाणु शक्तिचालित जहाज और पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है। चीन की जहाजरोधी बैलेस्टिक मिसाइल प्रणाली (एएसबीएम) का लक्ष्य अमेरिकी जहाजों को निशाना बनाना है। शुरुआती परीक्षणों पर खरी उतरने के बाद यह अपेक्षा से पहले ही चीनी सेना के बेड़े में शामिल हो चुकी है। अधिक उन्नत और आधुनिक हथियारों और लड़ाकू विमानों को निर्मित करने का चीन का कार्यक्रम का नतीजा है जे-20 स्टील्थ फाइटर जेट। पिछले साल ही उसने परीक्षण उड़ान भरी थी। चीन पहले ही सेटेलाइट रोधी युद्ध प्रणाली में अपना जौहर दिखा चुका है। वह परमाणु हथियारों से लैस मिसाइलों को मोबाइल लांचरों और अत्याधुनिक पनडुब्बियों में फिट कर चुका है। परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल न करने की अपनी नीति से पलटते हुए चीनी नेतृत्व ने संकेत दिए हैं कि अगर वे देश पर खतरा मंडराते देखेंगे तो पहले हमला करने से भी नहीं चूकेंगे। इस प्रकार चीन ने परमाणु हमले को लेकर विश्व के संदेह और चिंताओं को बढ़ा दिया है। परमाणु हथियार का पहले इस्तेमाल करने या न करने को लेकर पीएलए में बहस तेज होती जा रही है। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन एक उभरती हुई शक्ति है और इसकी विश्व में धाक जम रही है। वह अपने हितों की रक्षा के लिए अपनी सेना को हमेशा तैयार रखना चाहता है, किंतु सेना के आधुनिकीकरण में चीन द्वारा अपनाई जाने वाली गोपनीयता से विश्व की चिंताएं बढ़ रही हैं। चीन पारदर्शिता में विश्वास नहीं रखता। वास्तव में, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी सुन जू के सिद्धांत पर अमल करती है। सुन जू ने कहा है, युद्धकला का सार दुश्मन को स्तब्ध करने में है। ऐसे समय जब भारत और चीन के बीच दिन पर दिन तनाव बढ़ता जा रहा है, भारत सरकार ने अपने ढीले-ढाले रवैये से उबरने की इच्छाशक्ति का प्रदर्शन नहीं किया है। इसके कारण ही भारत के सैन्य शक्ति के रूप में उभरने के तमाम दावे थोथे लगते हैं। भारत और चीन की सैन्य क्षमताओं के बीच का अंतर खतरनाक ढंग से बढ़ रहा है। यह पहलू किसी भी क्षेत्र में भारत के प्रमुख क्षेत्रीय और वैश्विक खिलाड़ी बनने में बाधाएं खड़ी करता रहेगा।

चुनाव प्रणाली पर सवाल

जुलूस निकालने, झंडा लहराने, समूह में निकलने या पोस्टर चिपकाने पर चुनाव आयोग की पाबंदी के कारण भारत में चुनाव का उत्सवी रंग समाप्त हो गया है, लेकिन इन पाबंदियों के कारण चुनाव का खर्च कम नहीं हुआ है। उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा विधानसभा के चुनाव में जो खर्च हुआ उतना खर्च कभी राज्यों के चुनाव में नहीं हुआ था। मोटे तौर पर तकरीबन दो हजार करोड़ रुपये खर्च हुए। तुलनात्मक दृष्टि से सबसे ज्यादा खर्च पंजाब में हुआ। चुनाव आयोग इसे रोकने के लिए कुछ नहीं कर सकता था। कोई लोकपाल इसका पता नहीं लगा सकता, क्योंकि वोट खरीदने का काम व्यक्तिगत स्तर पर गोपनीय ढंग से हुआ। हम लोगों के समय में कार्यकर्ता झोला टांगकर, चना-चबेना लेकर पैदल घूमा करते थे। वे जमीनी स्तर पर चुनाव प्रचार करते थे, लेकिन आज तो पार्टी का एक साधारण कार्यकर्ता भी चुनाव प्रचार के लिए जीप की मांग करता है, सुबह के नाश्ते से लेकर चारो पहर के खाने की अपेक्षा करता है। प्रेरणा के तहत काम करने वालों में सिर्फ कम्युनिस्ट कामरेड और आरएसएस प्रचारक ही बचे हैं। अब तो इन लोगों के बीच भी पहले वाला समर्पण भाव नहीं रह गया है। चुनाव आयोग ने करीब 50 करोड़ रुपये और शराब से लदे कुछ ट्रकों को जब्त किया, लेकिन यह उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों द्वारा किए गए खर्च का एक प्रतिशत भी नहीं है। चुनाव में कोई हिंसा नहीं हुई। इसका श्रेय चुनाव आयोग और मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी को जाता है। आदर्श आचार संहिता का लागू होना चुनावों के लिए एक खास बात साबित हुई है। इसे लेकर बीस साल पहले सभी राजनीतिक दलों के बीच सहमति बनी थी। इस मसले पर सिर्फ कांग्रेस पार्टी ने चुनाव आयोग को आड़े हाथों लिया और आचार संहिता को वैधानिक बना देने की धमकी दे डाली ताकि इसके उल्लंघन के मामलों को चुनाव आयोग के बजाए कोर्ट में घसीटा जा सके। दरअसल, चुनाव आयोग में कार्रवाई तुरंत हो जाती है और शिकायतों पर तत्काल ध्यान दिया जाता है, लेकिन सरकार की इस उलट सोच के कारण समझ में आते हैं। हकीकत यह है कि कांग्रेस पार्टी खुद ही सबसे बड़ी गुनहगार साबित हुई है। कानून मंत्री सलमान खुर्शीद से लेकर राहुल गांधी तक ने आचार संहिता को ठेंगा दिखाने में कोई कोताही नहीं की। कांग्रेस ने धार्मिक कार्ड का भी इस्तेमाल किया और सत्ता में आने पर शिक्षा एवं रोजगार में पिछड़ी जातियों के लिए आरक्षित 27 प्रतिशत के कोटे में से 9 प्रतिशत मुसलमानों के लिए आरक्षित करने की घोषणा की। चुनाव आयोग ने जब चुनाव प्रचार के दौरान कोटे के अंदर कोटे की घोषणा करने के लिए कानून मंत्री की खिंचाई की तब पहले तो मंत्री महोदय ने ऐंठ दिखाई, लेकिन बाद में लिखित माफी मांग ली। अगर एक और केंद्रीय मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने मुसलमानों के लिए सब-कोटा की बात नहीं दोहराई होती तो यह मामला तुरंत खत्म हो गया होता, लेकिन उन्होंने चुनाव आयोग को अदालत में भी चुनौती दे डाली है। पिछड़े मुसलमानों को आरक्षण मिले, इससे किसी का विरोध नहीं है। आपत्ति धार्मिक आधार पर आरक्षण के सवाल पर है। भारत का संविधान इसकी अनुमति नहीं देता। चुनाव के दौरान राहुल गांधी कुछ अलग ही पिच पर बैटिंग करते दिखे। जो व्यक्ति भारत का प्रधानमंत्री बन सकता है, उसके लिए ऐसी हरकतें शोभा नहीं देतीं। उन्होंने एक विपक्षी दल के चुनावी घोषणापत्र को फाड़ डाला और ऐसी टिप्पणियां कीं जिसे करने में सड़क छाप आदमी भी संकोच महसूस करेगा। निर्धारित समय और रास्ते से इतर जाकर रोड शो करने के लिए उनके खिलाफ अदालत में एक मामला भी दर्ज किया गया। अगर उन्होंने माफी मांग ली होती तो मामला खत्म हो गया होता, लेकिन वह अड़े रहे। वास्तव में उत्तर प्रदेश में सोनिया गांधी की बेटी प्रियंका के पति समेत पूरा गांधी परिवार लगा रहा। इस राज परिवार ने मान रखा है कि सिर्फ वही भारत की एकता को कायम रख सकता है और कांग्रेस को छोड़कर बाकी सभी राजनीतिक पार्टियां संकीर्ण और सीमित हैं। इसीलिए यह पूरा का पूरा राज परिवार उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को अस्तित्वविहीनता के दलदल से निकालने में जुटा हुआ था। खेद की बात है कि पार्टी ने राजनीतिक अपील के लिए धर्म का सहारा लिया, जबकि इस परिवार के मुखिया जवाहर लाल नेहरू अपने पूरे जीवनकाल में धर्म को राजनीति से जोड़ने की निंदा करते रहे थे। 19 प्रतिशत वोटर मुसलमान हैं और कांग्रेस ने इस चुनाव में इन मुसलमान वोटरों को लुभाने के लिए अपनी पंथनिरपेक्ष पहचान से समझौता किया। भाजपा से माहौल को सांप्रदायिक बनाने की आशंका थी, लेकिन यहां तो पहला पत्थर कांग्रेस ने ही फेंक दिया। ऐसे में भाजपा को क्या दोष दिया जाए? भाजपा को उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी की जरूरत नहीं पड़ी, क्योंकि यहां उमा भारती ही मुसलमानों के खिलाफ काफी आग उगल चुकी थीं। दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि हर इलाके में जाति और उपजाति का इस्तेमाल बढ़ा है। जाति की यह बुराई मुसलमानों तक फैल गई है, जबकि इस्लाम में जाति व्यवस्था को मानने पर पाबंदी है। हकीकत तो यह है कि जातीय भेदभाव से मुक्ति पाने के लिए ही अनेक हिंदुओं ने इस्लाम धर्म को स्वीकार किया, लेकिन अब वे पा रहे हैं कि मुस्लिम समाज भी हिंदुओं की तरह ही ऊंची और नीची जातियों में बंटा हुआ है। बहरहाल, चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष हुआ, इसके लिए चुनाव आयोग बधाई का पात्र है, लेकिन जब पैसा, जाति और धर्म के खेल ने चुनाव को मजाक बना दिया तो फिर क्या ऐसे चुनाव को स्वतंत्र और निष्पक्ष माना जा सकता है? इस सवाल का जवाब चुनाव आयोग को नहीं, बल्कि सभी राजनीतिक दलों को देना है।

तालिबान से बेमानी वार्ता

(अमेरिका-तालिबान वार्ता पर अडनी ब्यूरो की टिप्पणी)


अगर अमेरिकी यह सोचते हैं कि वे तालिबान के साथ कोई समझौता कर लेंगे, जो न केवल 2014 में उनकी वापसी की लाज रख पाएगा बल्कि अफगानिस्तान के युद्ध-पीडि़त लोगों के लिए सम्मानजनक भी होगा, तो वे मुगालते में हैं। हालांकि इस उग्रवादी संगठन को कतर में अपना दफ्तर खोलने की इजाजत दे दी गई है, लेकिन लगता नहीं कि वह अपनी तीन बुनियादी मांगों पर कोई समझौता करेगा। उसकी मांगें हैं- अफगानिस्तान से सभी विदेशी सेनाओं की वापसी, काबुल और ग्वातानामो बे की जेलों में बंद सभी तालिबान कैदियों की रिहाई तथा खुद को मुख्यधारा में शामिल करने के लिए हामिद करजई सरकार को हटाना। और फिर, अफगानिस्तान के बारे में लंदन में हुए पिछले सम्मेलन में अफगानिस्तान के संविधान को स्वीकार करने, सभी जातीय/राजनीतिक दलों को समान अवसर उपलब्ध कराने तथा नागरिकों के अधिकारों का सम्मान करने जैसी मानी गई सुलह-सफाई की कुछ बातों के बारे में वह जानबूझकर चुप है। हथियार सौंपने और हिंसा त्यागने के बारे में भी वह मौन है। वाशिंगटन की कोशिश के बारे में न तो करजई सरकार और न ही पाक सेना खुश हैं, क्योंकि दोनों को ही इस प्रकार की व्यवस्था से अलग-अलग उम्मीदें हैं। पाकिस्तान काबुल में एक ऐसी सरकार चाहता है, जिस पर उसका नियंत्रण हो और जो उसे भारत के खिलाफ बहु-प्रतीक्षित सामरिक पैठ दिला सके। इसलिए उसने इस नीति को थोपने तथा यह सुनिश्चित करने के लिए तालिबान को जरिया बनाया है कि सभी विदेशी सेनाएं हट जाएं और मैदान उसके लिए साफ हो जाए। राष्ट्रपति करजई का मानना है कि वह तालिबान पर उसकी शर्तों पर समझौता नहीं करना चाहते और शांति के लिए बातचीत के लिए उसे हथियार डालने होंगे। अफगानिस्तान के लोकतांत्रिक संस्थानों को स्वीकार कर लेने और संसदीय चुनावों में भाग लेकर वे सत्ता में भी आ सकते हैं। हाल ही में गतिविधियों में तेजी आ गई है, जिससे पता चलता है कि अमेरिका अपनी योजना को अमली जामा पहनाने के लिए उत्सुक है। अमेरिका की हड़बड़ी का कारण हाल ही में तालिबान द्वारा जारी दो बयान हैं। अमेरिका इन्हें इतनी बड़ी रियायतें मानता है कि वह ग्वातानामो बे में बंद पांच तालिबान आतंकवादियों को रिहा करने पर सोचने लगा है। पहली घोषणा में कहा गया था कि कतर में दफ्तर खोलने के बाद तालिबान दुनिया से बातचीत करेंगे। दूसरी में कहा गया था कि बातचीत का मतलब जिहाद की समाप्ति या अफगान संविधान को मानना नहीं होगा। भोले-भाले अमेरिकी इन दोनों विरोधाभासी बातों को सकारात्मक संकेत मान रहे हैं! तालिबान की शतर्ें तो स्पष्ट हैं, लेकिन अमेरिकी शर्तों का क्या? हैरानी की बात है कि कम से कम सार्वजनिक तौर पर तालिबान से आत्मघाती बम हमलों को रोकने के बारे में कोई शर्त नहीं रखी गई, जिनका इस्तेमाल अफगान सरकार से रियायतें हासिल करने के एक हथियार के रूप में किया जाता रहा है। अमेरिका की इस बात के लिए तारीफ की जा सकती है कि इस चाल से तालिबान ने हिंसा छोड़ने और शांति के लिए वार्ता करने की इच्छा जताई है, जो अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। दरअसल, तालिबान के मजहबी कट्टरपन के खिलाफ लड़ना कभी अमेरिकी के एजेंडे में रहा ही नहीं है। उसका असल मकसद तो अलकायदा को हराना, पाकिस्तान में उसकी सुरक्षित पनाहगाहों का खात्मा करना और उसे फिर सिर उठाने से रोकना है। इस प्रकार, तालिबान की विचारधारा मुद्दा नहीं है और न ही यह बातचीत का आधार है। अमेरिका मानवाधिकारों के मुद्दे पर तालिबान से कोई आश्वासन लेता नहीं दिख रहा। यह खतरनाक बात है। अमेरिका का अफगानिस्तान से हटने का मतलब है तालिबान के पांच साल के शासन (सितंबर 1996-अक्टूबर 2001) की पुनरावृत्ति का खतरा।

भारत की निर्भयता

(मिसाइल बेडे़ में शामिल नए हथियार पर मुकुल व्यास की टिप्पणी )


भारत के रक्षा वैज्ञानिकों ने एक नई किस्म की कू्रज मिसाइल विकसित की है। निर्भय नामक इस निर्देशित मिसाइल को अमेरिका की टोम हॉक मिसाइल की टक्कर का माना जा रहा है। निर्भय का परीक्षण अगले महीने किया जा सकता है। यह पहला अवसर है जब भारत ने सब-सोनिक स्पीड पर उड़ने वाली मिसाइल का विकास किया है। सब-सोनिक मिसाइल ध्वनि की रफ्तार से कम गति पर उड़ान भरती है, जबकि सुपरसोनिक मिसाइल की रफ्तार ध्वनि की रफ्तार से भी तेज होती है। भारत और रूस द्वारा विकसित की गई ब्रंाोस (Brahmos)सुपरसोनिक कू्रज मिसाइल 2.8 मेक (ध्वनि की रफ्तार से 2.8 गुना अधिक) की स्पीड से 290 किलोमीटर तक की दूरी तय करती है। भारत काफी समय से एक ऐसी सब-सोनिक मिसाइल की तलाश में था, जो लंबी दूरी तक उड़ान भर सके। निर्भय का डिजाइन भारतीय रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के बेंगलूर स्थित एरोनाटिकल डेवलपमेंट एस्टाब्लिशमेंट ने तैयार किया है। निर्भय में शामिल की गई अधिकांश तकनीकें लक्ष्य से ली गई हैं, जो एक चालकरहित लक्ष्यभेदी विमान है। निर्भय सतह से सतह पर मार करने वाली दो चरणों वाली मिसाइल है। एक बूस्टर इंजिन द्वारा इसके पहले चरण को जमीन से दागा जाता है, जबकि दूसरा चरण एक टर्बो -प्रोप इंजिन द्वारा संचालित होता है, जिसका प्रयोग विमानों में होता है। यह मिसाइल एक ही बार में कई पेलोड ले जा सकती है और एक साथ कई लक्ष्यों से निपट सकती है। डीआरडीओ के अधिकारियों के मुताबिक यह मिसाइल कई लक्ष्यों के बीच में से किसी खास को लक्ष्य के चारों तरफ घूम कर उस पर हमला करने में सक्षम है। इसका प्रहार एकदम सटीक होता है। इस दृष्टि से यह बहुत ही महत्वपूर्ण मिसाइल है। इसकी रेंज 750 किलोमीटर से अधिक है। यह काफी लंबे समय तक हवा में रह सकती है और पेड़ जितनी ऊंचाई पर भी उड़ान भर सकती है। डीआरडीओ ने निर्भय मिसाइल के अलावा देश में कुछ और महत्वपूर्ण मिसाइल सिस्टम विकसित करने में बड़ी कामयाबी हासिल की है। इनमें एडवांस्ड लाइट-वेट टॉरपिडो और आकाश मिसाइल सिस्टम शामिल हैं। टॉरपिडो समुद्र के अंदर दागा जाने वाली मिसाइल है। इसे जहाज या पनडुब्बी से शत्रु के जहाजों और पनडुब्बियों पर छोड़ा जाता है। टॉरपिडो को हेलिकॉप्टर से भी दागा जा सकता है। विशाखापत्तनम स्थित प्रयोगशाला द्वारा विकसित टॉरपिडो का नाम टाल (टॉरपिडो एडवांस्ड लाइट) रखा गया है। टाल मिसाइल की लंबाई करीब 2.75 मीटर है। इसका वजन 220 किलो है। इसमें 60 किलो विस्फोटक उठाने की क्षमता है। टाल पनडुब्बी-भेदी टॉरपिडो है और यह दुश्मन की पनडुब्बी की खोज करते हुए सात किलोमीटर की अधिकतम दूरी तय कर सकता है। टाल को जहाजों, हेलीकॉप्टरों और विमानों से दागा जा सकता है। टाल का विकास पूरी तरह से स्वदेशी साधनों से किया गया है। कुछ सेंसरों और सर्किट्स को छोड़ कर यह पूरी तरह से देश में ही बना है। इसे बनाने के लिए बाहर से कोई टेक्नोलॉजी उपलब्ध नहीं थी। टाल समुद्र में 33 नोट्स प्रति घंटे की रफ्तार से आगे बढ़ता है और 540 मीटर की गहराई तक जा सकता है। आकाश एक विमान-भेदी रक्षा प्रणाली है। आकाश मिसाइल एक साथ कई लक्ष्यों से निपट सकती है। इसके आयुध का वजन 60 किलो है। दुश्मन के विमान को निशाना बनाने के लिए मिसाइल की रेंज 25 किलोमीटर है। आकाश को लक्ष्य की ओर निर्देशित करने के लिए बेंगलूर की एक डीआरडीओ प्रयोगशाला ने एक खास रेडार राजेंद्र का विकास किया है। भारत के रक्षा वैज्ञानिक बहुत जल्द हेलिना का भी परीक्षण करेंगे, जोकि टैंक भेदी नाग मिसाइल का हेलीकॉप्टर से दागे जाने वाला संस्करण है। यह मिसाइल 8 किलो वजन के आयुध के साथ चार किलोमीटर दूर तक दुश्मन के टैंकों को निशाना बना सकती है।

क्यों और कैसे बनता है हमारा बजट?

आम बजट 16 माच को पेश किया जायेगा हर साल सभी को इसका इंतजार बड़ी शिद्दत से रहता है हो भी क्यों न, आखिर इसी से तय होता है कि सरकार अपनी जनता के लिए किस तरह की नीतियों और योजनाओं की घोषणा करने वाली है सारा मामला जनता से जुड़ा होता है इसके बावजूद कइ लोग नहीं जानते हैं कि आखिर इतना महत्वपूण बजट तैया कैसे होता है? इसे गोपनीय क्यों रखा जाता है? बजट पेश होने से पहले वह किन प्रक्रियाओं से गुजरता है? आइये जानते हैं बजट की इन्हीं बारीकियों के बारे में




भारत में अगर सबसे गोपनीय कोइ सावजनिक चीज है, तो वह बजट है बजट भाषण में कही गयी बातें या बजट में पेश किये जा रहे प्रस्तावों को बेहद गोपनीय माना जाता है उन्हें ठीक उसी तरह तरह छिपाकर, संभालकर रखा जाता है दिल्ली का नॉथ ब्लॉक यानी वित्तमंत्री का दफ्तर सरकार के लिए तिजोरी की तरह है बजट आने से कुछ दिन पहले से तो इस तिजोरी की सुरषा काफी कड़ी कर दी जाती है



कितनी होती है सुरषा



बजट की सुरषा के लिए सरकार कितनी सचेत है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि 2006 से भारत की खुफिया एजेंसी आइबी के एजेंट इसकी निगरानी करते हैं वे लोग दफ्तर के बजट के लिए काम कर रहे लोगों के घरों और मोबाइल फोनों को टेप करते हैं बजट तैयार करने में लगभग एक दजन लोग काम करते हैं और वे लोग कहां जा रहे हैं, किससे मिल रहे हैं, हर बात आइबी की नजर रहती है भारत के वित्त सचिव तक की निगरानी की जाती है बजट से पहले वित्त सचिव को जेड सिक्योरिटी मुहैया करायी जाती है और आइबी नजर रखती है कि उनके आसपास क्या हो रहा है?



इ-मेल भी नहीं भेज सकते



इलेक्ट­ॉनिक युग में मुश्किलें ब़ढ गयी हैं, क्योंकि अब हर काम कंप्यूटरों के जरिये होता है कइ बार तो बजट से पहले वित्त मंत्रालय से इ-मेल भेजने तक की सुविधा भी छीन ली जाती है



छपाइ से पहले और उसके बाद



बजट तैयार हो जाने के बाद उसे छपाइ के लिए भेजा जाता है यह बात सावजनिक नहीं की जाती है कि बजट भाषण की छपाइ कब होती है हालांकि, ऐसा माना जाता है कि बजट पेश होने से 1 या 2 दिन पहले ही इसे छपाइ के लिए प्रेस में भेजा जाता है लेकिन, यह छपाइ भी किसी सामान्य सरकारी प्रेस में नहीं होती केंद्रीय बजट की छपाइ एक विशेष प्रेस में होती है, जो नॉथ ब्लॉक यानी सबसे सुरषिात जगह पर मौजूद है बेसमेंट में बनायी गयी यह विशेष प्रेस आधुनिक है जहां सारी सुविधाएं मुहैया करायी गयी हैं बजट की छपाइ के लिए जाने से लेकर बजट भाषण के प़ढे जाने तक इसे तैयार करने वाले अधिकारी लगभग कैद में रहते हैं



कइ मंत्रालय करते हैं माथापच्ची



बजट तैयार करना सिफ वित्त मंत्रालय का काम नहीं है इसके लिए कम-से -कम 5 और मंत्रालयों के अधिकारी और अलग-अलग षोत्र के विशेषज्ञ वित्त मंत्रालय के अधिकारियों की मदद करते हैं मसलन कानून के जानकार पूरे बजट को प़ढते हैं और बताते हैं कि कहीं एक भी शब्द संविधान के बाहर तो नहीं है यह काम कानून मंत्रालय का होता है इसलिए वित्त मंत्री जब बजट भाषण प़ढने संसद में जाते हैं, तो अपना मरून रंग का ब्रीफकेस फोटोग्राफरों को दिखाते हैं उस ब्रीफकेस की अहमियत यही है कि उसके अंदर देश का सबसे गोपनीय दस्तावेज बंद होता है



आखिर क्यों होती है इतनी गोपनीयता



भारत में कइ सालों से यह बहस चल रही है कि बजट के लिए जिस तरह की गोपनीयता बरती जाती है वह फिजूल है और उससे बाजार में सिफ डर पैदा होता है जब प्रशासन में पारदशिता की बात की जा रही है, तो इस तरह की गोपनीयता बरतना विरोधाभास पैदा करता है ऐसा इसलिए भी है कि कइ देशों में बजट ऐसा गोपनीय मुद्दा नहीं है, जैसा भारत में है मसलन अमेरिका में तो राष्ट­पति लोगों का समथन जुटाने के लिए अकसर सावजनिक रूप से बताते हैं कि वह बजट में क्या करना चाहते हैं



विभित्र देशों में सालाना बजट को बड़े खुलासे करने वाले अहम मौके के तौर पर नहीं देखा जाता इसे सरकारें सालभर का लेखा-जोखा पेश करने और यह बताने के लिए इस्तेमाल करती हैं कि अगले साल कहां-कहां वह किस तरह खच करना चाहती है लेकिन, कब क्या और कहां खच करना है इसका फैसला साल के किसी भी वक्त हो सकता है भारत में पिछले दो तीन साल में ऐसा होने भी लगा है





क्या आप जानते हैं?



आजादी से पहले अंग्रेजों के समय में बजट शाम को पांच बजे पेश किया जाता था ऐसा इसलिए था कि यह बजट इंग्लैंड में भी सुना जाता था और भारत में शाम के समय वहां सुबह रहती थी आजादी के बाद भी शाम को पांच बजे बजट पेश किया जाता था, लेकिन वष 1999-2000 में यशवंत सिन्हा ने पहली बार सुबह के समय बजट पेश कियामोरारजी देसाइ ने 1964 और 1968 में अपने जन्म के अवसर पर आम बजट पेश किया था इंदिरा गांधी एकमात्र महिला हैं, जिन्होंने संसद में बजट पेश किया था उन्होंने 1970 में आपातकाल के दौरान यह बजट पेश किया था पहले बजट दो भागों में होता था, पाट-ए और पाट-बी दूसरा भाग जनता से संबंधित होता था अब बजट भाषण एक ही भाग में होता हैआजाद भारत का पहला बजट 26 नवंबर 1947 को पेश किया गया था यह एक अंतरिम बजट था इसे आरके षणमुगम चेट्टी ने पेश किया था वहीं, जॉन मथाइ को भारतीय गणतंत्र का पहला बजट पेश करने का Ÿोय जाता है उन्होंने 28 फरवरी 1950 को बजट पेश किया था बजट पेश करने की जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय की होती हैबजट की तारीख राष्ट­पति तय करता है भाषण प़ढने के लिए लोकसभा अध्यषा द्वारा वित्तमंत्री को आमंत्रित किया जाता है सुबह 11 बजे वित्तमंत्री अपना बजट भाषण शुरू करते हैं यदि बजट प्रस्ताव संसद में पारित नहीं होने की स्थिति में इसका मतलब सरकार के गिराने से लगाया जाता है ऐसी स्थिति में प्रधानमंत्री को इस्तीफा देना पड़ता हैवित्तमंत्री बजट को पहले लोकसभा में पेशकरता है और बाद में इसे राह्लयसभा में भी पेश किया जाता है बजट आमतौर पर फरवरी के अंतिम तारीख को ही संसद के पटल पर रखा जाता है, क्योंकि नया वित्त वष अप्रैल से शुरू होता है और इस तरह चचा के लिए एक महीने का समय मिल जाता हैआजादी के पहले भारतीय प्रप्रतिनिधियों को बजट भाषण पर बहस करने का अधिकार नहीं था 1920 तक केंद्र स्तर पर केवल एक ही बजट बनता था सबसे पहले 1921 में पहली बार सामान्य बजट से रेल बजट को अलग किया गया उसके बाद से अभी तक रेल बजट अलग से पेश किया जाता है16 माच को जब वित्त मंत्री प्रणब मुखजीर्त् लोकसभा में बजट पेश करेंगे, तो वह सात बार आम बजट पेश करने वाले वित्तमंत्रियों की सूची में शामिल हो जायेंगे उनसे पहले यशवंत सिन्हा सात बार बजट पेश कर चुके हैं हालांकि, संसद में सबसे ह्लयादा बार बजट पेश करने का रिकॉड मोरारजी देसाइ के नाम दज है उन्होंने दस बार बजट पेश किया था



संविधान के अनुच्छेद 112 के तहत बजट पेश किया जाता है हमारे देश में बजट पद्धति की शुरुआत का Ÿोय ब्रिटिश भारत के पहले वायसराय लॉड कैनिंग को जाता है हालांकि, भारत का पहला बजट जेम्स विल्सन ने वायसराय परिषद् में 18 फरवरी 1860 को पेश किया था इसी कारण जेम्स विल्सन को भारतीय बजट पद्धति का संस्थापक भी कहा जाता है l



‘आम बजट’ की बारीकियां



आगामी 16 माच को संसद में आम बजट पेश किया जायेगा भारत में बजट एक अधिक पारदशी और परिणाममूूूलक आथिक प्रबंधन प्रणाली है, जिसमें सरकार के खर्चो के ब्योरे के साथ-साथ आगामी खच के लिए एक रूपरेखा तैयार की जाती है जनता के लिए तैयार किया जाने वाला यह बजट किन प्रक्रियाओं से होकर गुजरता है इन्हीं बिंदुओं की पड़ताल करता आज का नॉलेज



नॉलेज डेस्क







बजट यह शब्द कानों में पड़ने पर एक ऐसी छवि सामने उभरती है कि देश का वित्तमंत्री ब्रीफकेस लिए संसद के सामने खड़ा है इसी ब्रीफकेस में साल भर में सरकार द्वारा की जाने वाली खचे का ब्योरा, राजस्व की लाभ-हानि और तमाम परियोजनाओं की जानकारी बंद होती है सीधे शब्दों में कहें तो संसद के दोनों सदनों में पेश किया जाने वाला वाषिक वित्तीय विवरण ‘आम बजट’ कहलाता है इस विवरण में एक वित्तीय वष (1 अप्रैल से 31 माच) की अवधि शामिल होती है हमारे देश में यह वित्तीय वष की शुरुआत हर साल 1 अप्रैल से होती है और 31 माच आखिरी दिन होता है इसी विवरण में वित्तीय वष के लिए भारत सरकार के अनुमानित व्यय (खच) और प्राप्तियों (आय) का लेखा-जोखा होता है



क्यों है बजट की आवश्यकता



ऐसा बिल्कुल नहीं है कि सरकार अपनी मजीर्त् से कोइ योजना शुरू करती है, टैक्स लगाती है, कज लेती है या राशि खच करती है चूंकि, प्रत्येक संसाधनों की एक सीमा है इसीलिए सीमित संसाधनों को सरकार की विभित्र गतिविधियों में आवंटित करने के लिए उचित बजट बनाने की जरूरत पड़ती है व्यय यानी खच के प्रत्येक मद पर अच्छी तरह सोच विचार किया जाता है एक तय अवधि के लिए राशिखच का अनुमान लगाया जाता है यानी सरकारी राजस्व को योजनाबद्ध तरीके से खच करने के लिए बजट की जरूरत पड़ती है



बजट में शामिल खच का अनुमान लोकसभा में पेश किया जाता है, जो अनुदान मांग के रूप में जाना जाता है इन मांगों को हर मंत्रालयों के पास भेजा जाता है और प्रमुख सेवाओं में से हर मंत्रालय के लिए एक अलग मांग पेशकी जाती है प्रत्येक मांग में कुल अनुदान का विवरण सबसे पहले रखा जाता है और इसके बाद विस्तृत अनुमानों के विवरण को मदों में बांटा जाता है यहां एक सवाल यह भी उठता है कि क्या सरकार अपनी मजीर्त् से जब चाहे बजट पेशकर सकती है ऐसा बिल्कुल नहीं है संसद में राष्ट­पति द्वारा नियत तिथि पर बजट प्रस्तुत किया जाता है वित्तमंत्री का बजट भाषण आम तौर पर दो भागों में होता है पहले भाग में देश का सामान्य आथिक सवेषाण होता है, जबकि दूसरे भाग में टैक्स से संबंधित प्रस्ताव शामिल होते हैं



लेखानुदान



संसद में बजट पर चचा अचानक शुरू नहीं होती है सबसे पहले लेखानुदान पेश किया जाता है, उसके बाद ही उस पर चचा शुरू होती है लेखानुदान के तहत एक विशेष प्रावधान बनाया गया है, जिससे सरकार वष के एक भाग के लिए विभित्र मदों पर खच करने की पयाप्त राशि आवंटित करती है



अब इस चचा की बात करें, तो यह दो चरणों में की जाती है पहले चरण में, बजट पर कुल मिलाकर एक आम चचा, जो लगभग 4 से 5 दिनों तक चलती है इस चरण पर बजट की व्यापक रूपरेखा और इसमें निहित सिद्धांतों और नीतियों पर चचा की जाती है



रेल और आम बजट पर सामान्य चचा के पहले चरण के पूरा हो जाने पर सदन एक नियत अवधि के लिए स्थगित कर दिया जाता है इस अवधि के दौरान रेल सहित विभित्र मंत्रालयों एवं विभागों की अनुदान मांगों पर संबंधित स्थायी समितियों द्वारा विचार किया जाता है यह विचार संसद के नियम 331 जी के तहत किया जाता है इन समितियों को अधिक समय लिए बिना निश्चित अवधि के अंदर संसद के सदन में अपनी रिपोट पेश करनी होती है स्थायी समितियों द्वारा अनुदान मांगों पर विचार की यह प्रणाली वष 1993-94 के बजट से शुरू हुइ थी स्थायी समितियों का गठन 31 सदस्यों को लेकर किया जाता है, जिसमें लोकसभा के 21 और राह्लयसभा के 10 सदस्य होते हैं स्थायी समितियों की रिपोट सटीक होती है इस रिपोट में कटौती के किसी स्वरूप का सुझाव नहीं होता है स्थायी समितियों की रिपोट सदन में प्रस्तुत करने के बाद सदन में अनुदान मांगों पर चचा और मतदान का काम मंत्रालयवार किया जाता है



इस प्रक्रिया के अलावा, विभित्र अनुदान मांगों में कटौती का प्रस्ताव भी पेश किया जा सकता है ऐसा इसलिए होता है ताकि अथव्यवस्था के आधार पर या नीति के मामलों में विचारों में अंतर होने पर या एक शिकायत को आवाज देने के लिए सरकार द्वारा मांगी गयी राशि में कटौती की जा सके



विनियोजन विधेयक



बजट प्रस्तावों पर आम चचा और अनुदान मांगों पर मतदान होने के बाद सरकार द्वारा विनियोजन विधेयक पेश किया जाता है विनियोजन विधेयक का मतलब यह होता है कि सरकार को भारत की समेकित निधि से खच करने का अधिकार मिल जाता है इस विधेयक को पारित करने की प्रक्रिया भी वही है, जो अन्य धनराशि से संबंधित विधेयकों के लिए अपनायी जाती है



बजट में सरकार सिफ योजनाओं की ही घोषणा नहीं करती है, बल्कि वह राजस्व प्राप्ति के लिए करों में ब़ढोतरी या उससे संबंधित अन्य प्रस्ताव भी पेश करती है इसे सामान्य शब्दों में ‘वित्त विधेयक’ के नाम से जाना जाता है आमतौर पर, सरकार के कराधान प्रस्तावों को प्रभावी बनाने के लिए इसे लोकसभा में लाया जाता है विनियोजन विधेयक के पारित होने के बाद इसे पारित किया जाता है



एक प्रस्ताव पूरक या अतिरिक्त अनुदान से भी संबंधित होता है दरअसल, संसद द्वारा अधिकृत राशि के अलावा कोइ भी खच संसद की मंजूरी के बिना नहीं किया जा सकता है जब भी अतिरिक्त व्यय करने की आवश्यकता होती है, तो संसद के सामने एक पूरक अनुमान लाया जाता है यदि वित्तीय वष के दौरान उस सेवा और उस वष के लिए दी गयी राशि से अतिरिक्त खच किया जाता है तो उसके लिए पूरक या अतिरिक्त अनुदान मांगें पेश की जाती हैंl



क्या हैं इसके महत्वपूण प्रावधान?







बजट में कुछ ऐसे प्रावधान होते हैं, जिसकी जानकारी हमें बहुत ही कम होती है लेकिन, बजट पेश करते समय इनका जिक्र अकसर हमें सुनने को मिलते हैं



वाषिक आथिक ब्योरा- यह बजट का विवरण होता है आमतौर पर इसे ‘आथिक ब्योरा’ भी कहते हैं



अनुदान की मांग - समेकित कोष के लिए अनुमानित खच को भी बजट ब्योरे में शामिल किया जाता है इसे लोकसभा के पटल पर रखा जाता है और सदस्यों के मतों के आधार पर इसे पारित किया जाता है सामान्यत: किसी मंत्रालय या विभाग या सेवा को भी इसमें शामिल करके प्रस्तुत किया जा सकता है



बजट प्राप्तियां - इसमें सालाना आथिक ब्योरे के आधार पर अनुमानित बजट मांग को विस्तार से समझाया जाता है और उसका विश्लेषण भी पेश किया जाता है इसमें पूंजी और प्राप्तियों को शामिल किया जाता है और उनके बाह्य मूल्यांकन की विस्तृत रिपोट रखी जाती है



बजट व्यय भाग 1 - इस भाग में नियोजित और अनियोजित पूंजी लागत के अनुमानित खच के बारे में और उनमें अंतर पर विस्तार से जानकारी दी हुइ होती है इसमें सामान्य खच, अनियोजित खच और योजना पर होने वाले खचे के बारे में जानकारियां होती हैं इस दस्तावेज में लिंग आधारित मदों और योजनाओं, बाल विकास एवं केंद्र सरकार की गारंटी में चल रही योजनाओं में माच महीने के अंत तक बची हुइ राशि का विवरण में होता है



बजट व्यय भाग 2 - अनुदानों की मांग के लिए सबसे पहले कइ योजनाओं पर होने वाले अनुमानित खच का संषिाप्त ब्योरा दिया जाता है, जिसके आधार पर इसे स्वीकार किया जाता है लेकिन, इसके लिए पिछले वर्षो और वतमान में आये बदलावों की तुलना और विश्लेषण किया जाता है



वित्त विधेयक - संविधान के अनुच्छेद 110 (1) (अ) में इस बात का प्रावधान है कि सरकार जरूरत के मुताबिक, बजट में नये कर प्रस्तुत कर सकती है साथ ही, उनमें बदलाव यानी उनकी दर में ब़ढोतरी या कमी कर सकती है इसके लिए सरकार को संसद में ज्ञापन संलग्न करना पड़ता है



वित्त विधेयक में प्रावधान की व्याख्या का ज्ञापन - इस ज्ञापन को सरकार संसद में करों के प्रावधान और जरूरत के विषय में जरूरी दस्तावेज के रूप में वित्त विधेयक में शामिल करती है इसमें यह बताया जाता है कि किसी कर को क्यों लगाया जा रहा है



बजट एक नजर में - इस दस्तावेज में सरकार की आय और व्यय का पूण उल्लेखहोता है इसमें बताया जाता है कि विभित्र मदों, कर और प्रत्यषा एवं अप्रत्यषा राजस्व से सरकार को कितनी आय हुइ है साथ ही, यह भी बताया जाता है कि वतमान वष में कितना व्यय किया जायेगा नियोजित और अनियोजित खर्चो का विवरण भी इसमें दिया रहता है विभित्र मंत्रालयों, विभागों और केंद्र शासित प्रदेशों के संसाधनों में होने वाले व्यय को भी इसमें शामिल किया जाता है इस दस्तावेज में राजस्व में हुइ हानियों को भी शामिल किया जाता है



बजट के मुख्य बिंदु - बजट में मुख्य रूप से विभित्र आथिक षोत्रों में हुए लाभ, नयी योजनाएं, जरूरी षोत्रों के लिए आवंटन और प्रस्तावित करों का विवरण होता है



वित्त मंत्री के बजट भाषण में की गयी घोषणाओं के क्रियान्वयन की स्थिति - इस दस्तावेज में पिछले वष के बजट भाषण में की गयी घोषणाओं और उनके क्रियान्वयन की स्थिति का विवरण दिया जाता है इसमें संबंधित वष में फरवरी महीने के पहले हफ्ते की स्थिति का विवरण भी रहता है



वित्तीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन अधिनियम से संबंधित दस्तावेज-



1 माइक्रो आथिक संरचना वक्तव्य 2 मध्यावधि राजकोषीय नीति



3 राजकोषीय नीति रणनीति स्टेटमेंट



वित्तीय जवाबदेही और बजट प्रबंधन अधिनियम के अनुच्छेद 2(5), 3(4), 3(3) और 3(2) के मुताबिक, अथव्यवस्था में विकास का अनुमान और उसके लिए उचित रणनीति बनाना सरकार की प्रमुख जिम्मेदारियों में से एक है सरकार यह भी सुनिश्चित करती है कि कर, निवेश और मूल्यों को नियंत्रित रखा जाये



यह सरकार की जिम्मेदारी है कि सकल घरेलू उत्पाद और बाजार मूल्यों से संबंधित तीन वष का लक्ष्य तय करे इसका संबंध राजस्व घाटा, आय में कमी, सकल घरेलू उत्पाद और कर एवं वष के अंत में ऋण और वित्तीय घाटे से हैl

SBI - IBPS - Model question paper

SBI - IBPS - Model question paper (Banking Industry and Finance Only ) - 1 (Sample question paper):




1. Bank for Interntional settlements is situated at

Basel, Switzerland

New York, U.S.A

Luxemburg

London, England

Paris, France

2. 'Swabhiman' is a campaign launched for

Deposit mobilisation

Special loans for jawans

Financial inclusion

Enlarging tax net

None of these

3. During the 2011-12 annual budget, the finance minister has targeted covering 73000 new areas with population of _____ and above under banking services by March 2012.

1000

2000

5000

10000

25000

4. The initial minimum capital required to set up new banks has been fixed at Rs. _____ crore.

100

200

500

1000

5000

5. RBI has issued guidelines for issuance of fresh licence to banks. As per them, new banks can be set up only through a wholly owned Non-Operative Holding Company (NOHC). The NOHC will have to hold a minimum _______% of the paid up capital for five years.

25

40

50

100

74

6. New entities that seek fresh banking licence have to open at least _____% of their branches in unbanked rural centers. (Populations up to 9999 as per 2001 census).

10

25

40

50

75

7. Foreign investment (FDI + FII + NRI) for new banks has been capped at ______% for initial five years.

25

49

51

74

76

8. In existing banks foreign share holding is permitted up to ____%.

100

74

51

49

40

9. SARFAESI (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest) Act enables financial institutions to

Recover bad loans

Improve financial inclusions

Assess market risks better

Open new branches and outlets

None of these

10. Ranjana Sadashiv Sonwane was the first person to get Aadhar Number in India. She is a tribal woman from Tembhali village in Nandurbar in

Madhya Pradesh

Assam

Rajasthan

Bihar

Maharashtra

11. Aadhar is a ______digit unique number provided by Unique Identification Authority of India (UIDAI).

10

12

14

15

20

12. UIDAI stores in a centralised database the folowing information of citizens except

Basic demographics

Photographs

Ten finger prints

Iris

DNA details

13. Who is the President of World Bank ?

Robert B Zoellick

Edward R Cook

King Keizer Mavric

Rupert Murdoch

Ms. Christine Lagarde

14. Who is the MD of IMF ?

Robert B Zoellick

Edward R Cook

King Keizer Mavric

Rupert Murdoch

Ms. Christine Lagarde



15. Who is the Deputy Chairman of Planning Commission ?

Dr. Manmohan Singh

Pranab Mukerjee

Dr. Subbarao

Montek Singh Ahluwalia

None of these

16. The 12th Five Year Plan would begin in the year____.

2011

2012

2013

2014

2015

17. Who owns State Bank of India now ?

It is wholly owned by Government of India

It is wholly owned by RBI

It is jointly owned by RBI and Government of India

Majority shares are with Government of India while the balance is owned by private people

None of these

18. Who is considered the 'Lender of Last Resort' in India ?

RBI

Government of India

Planning Commission

Development Banks

None of these

19. Maximum amount per transaction using NEFT is limited to______.

Rs. 50000

Rs. 100000

Rs. 200000

Rs. 500000

No such limit

20. What is the minimum service charge per transaction for NEFT/RTGS ?

Rs. 6

Rs. 8

Rs. 10

Rs. 25

None of these

21. Banks allow 'no frill account' now. What is their peculiarity ?

Low minimum balance to be kept

No minimum balance requirements

No interest will be given to such accounts

KYC norms are not mandatory

None of these

22. Renminby is the official currency of______

Hong Kong

China

Thailand

Laos

Singapore

23. Which is the biggest financial institution in India ?

SBI

ICICI

LIC

GIC

UTI

24. India's first rural bank ATM card was issued by National Payments Corporation of India for the Kashi Gomti Samyut Gramin Bank. This card is named ________

Rupay Grmin Card

Kisan Card

Samyut Card

Kashi Gramin Card

None of these

25. The above mentioned card was launched in association with_____

SBI

Union Bank of India

Canara Bank

Bank of India

None of these

26. Which of the following is NOT a pubic sector bank functioning in India now ?

Andhra Bank

Bank of Maharashtra

United Bank of India

New Bank of India

Allahabad Bank

27. From which state was the Janani-Shishu Suraksha Karyakram (JSSK) of the Ministry of Health and Family Welfare launched recently ?

Kerala

Maharashtra

Haryana

Rajasthan

None of these

28. SCORES is a complains redressal system launched by ________

SEBI

IBA

CBDT

CCI

None of these

29. Direct Tax collections account for what share of GDP in India ?

9.26 %

7.62 %

5.66 %

4.72 %

None of these

30. The National Broadband Plan is aimed at rolling out broadband infrastructure to every village with more than _____ people.

500

1000

1500

2000

None of these

31. Which of the following have been disallowed from opening branches abroad by the RBI ?

Private sector banks

Pension funds

Cooperative banks

NBFCs

None of these

32. What is India's per capita income at current prices in 2010-11 ?

Rs. 41532

Rs. 45278

Rs. 49294

Rs. 54835

None

33. What is the share of micro small and medium enterprises (MSMEs) in India's industrial production ?

8.72 %

16.18 %

24.67 %

44.86 %

None of these

34. Goa became the first state in the country to launch cashless health insurance scheme "______ Arogya Bhima Yojana" for its entire population in September 2011.

Shatabdi

Rashtriya

Nehru

Swarnajayanti

Sampoorna

35. Which of the following is a private sector bank ?

Oriental Bank of Commerce

Karur Vysya Bank

Indian Bank

Corporation Bank

All the above

36. With which of the following has India Post tied up to provide money transfer service to enable those working abroad to remit money to their dependents in India not having bank accounts.

Money Gram

Western Union

Paypal

Master Card

Visa

37. What is the full form of DGFT ?

Development and Grouping of Foreign Trade

Demand and Grouping of Foreign Trade

Director General of Foreign Trade

All the above are correct under different contexts

None of these

38. The RBI capped bank investments in to liquid schemes to what per cent of the bank's net worth ?

15 %

10 %

12 %

13.2 %

None of these

39. Which of the following bodies in April 2011 modified the norms for appointment of its internal auditor ?

SEBI

PFRDA

IRDA

India Inc

None of these

40. NASSCOM Chairman ?

Rajendra Singh Pawar

Harsh Manglik

N. Chandrashekaran

Ganesh Natarajan

None of these





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ANSWER KEY:







1. Bank for Interntional settlements is situated at

Basel, Switzerland

2. 'Swabhiman' is a campaign launched fo



3. Financial Inclusion



3. During the 2011-12 annual budget, the finance minister has targeted covering 73000 new areas with population of _____ and above under banking services by March 2012.



2. 2000



4. The initial minimum capital required to set up new banks has been fixed at Rs. _____ crore.



3. 500



5. RBI has issued guidelines for issuance of fresh licence to banks. As per them, new banks can be set up only through a wholly owned Non-Operative Holding Company (NOHC). The NOHC will have to hold a minimum _______% of the paid up capital for five years.



2. 40



6. New entities that seek fresh banking licence have to open at least _____% of their branches in unbanked rural centers. (Populations up to 9999 as per 2001 census).



2. 25



7. Foreign investment (FDI + FII + NRI) for new banks has been capped at ______% for initial five years.





2. 49





8. In existing banks foreign share holding is permitted up to ____%.



2. 74

9. SARFAESI (Securitisation and Reconstruction of Financial Assets and Enforcement of Security Interest) Act enables financial institutions to

Recover bad loans

10. Ranjana Sadashiv Sonwane was the first person to get Aadhar Number in India. She is a tribal woman from Tembhali village in Nandurbar in



5. Maharashtra



11. Aadhar is a ______digit unique number provided by Unique Identification Authority of India (UIDAI)



2. 12



12. UIDAI stores in a centralised database the folowing information of citizens except



5. DNA Details



13. Who is the President of World Bank ?

Robert B Zoellick

14. Who is the MD of IMF ?



5. Ms. Christine Lagarde



15. Who is the Deputy Chairman of Planning Commission ?



4. Montek Singh Ahluwalia

16. The 12th Five Year Plan would begin in the year____.



2. 2012



17. Who owns State Bank of India now ?



4. Majority shares are with Government of India while the balance is owned by private people



18. Who is considered the 'Lender of Last Resort' in India ?

RBI

19. Maximum amount per transaction using NEFT is limited to______.



3. Rs. 200000



20. What is the minimum service charge per transaction for NEFT/RTGS ?

Rs. 6

21. Banks allow 'no frill account' now. What is their peculiarity ?



2. No minimum balance requirements



22. Renminby is the official currency of______



2. China



23. Which is the biggest financial institution in India ?



3. LIC



24. India's first rural bank ATM card was issued by National Payments Corporation of India for the Kashi Gomti Samyut Gramin Bank. This card is named ________

Rupay Grmin Card

25. The above mentioned card was launched in association with_____



2. Union Bank of India



26. Which of the following is NOT a pubic sector bank functioning in India now ?



4. New Bank of India



27. From which state was the Janani-Shishu Suraksha Karyakram (JSSK) of the Ministry of Health and Family Welfare launched recently ?



3. Haryana



28. SCORES is a complains redressal system launched by ________

SEBI

29. Direct Tax collections account for what share of GDP in India ?



3. 5.66 %



30. The National Broadband Plan is aimed at rolling out broadband infrastructure to every village with more than _____ people.

500

31. Which of the following have been disallowed from opening branches abroad by the RBI ?



4. NBFCs



32. What is India's per capita income at current prices in 2010-11 ?



4. Rs. 54835



33. What is the share of micro small and medium enterprises (MSMEs) in India's industrial production ?



4. 44.86 %



34. Goa became the first state in the country to launch cashless health insurance scheme "______ Arogya Bhima Yojana" for its entire population in September 2011.



4. Swarnajayanti



35. Which of the following is a private sector bank ?



2. Karur Vysya Bank



36. With which of the following has India Post tied up to provide money transfer service to enable those working abroad to remit money to their dependents in India not having bank accounts.



Money Gram

37. What is the full form of DGFT ?

3. Director General of Foreign Trade



38. The RBI capped bank investments in to liquid schemes to what per cent of the bank's net worth ?

2. 10 %



39. Which of the following bodies in April 2011 modified the norms for appointment of its internal auditor ?



SEBI

40. NASSCOM Chairman ?



Rajendra Singh Pawar

आम जनता की कसौटी पर आम बजट

महंगाई से त्रस्त जनता के लिए नया बजट नई मुसीबतें लेकर आया है। यह अभूतपूर्व टैक्स वाला बजट है। पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ने का संकेत देकर सरकार ने जनता पर दोहरा बोझ लाद दिया है। वित्तमंत्री ने सभी स्तरों पर उत्पाद शुल्क की दर एक से दो फीसदी बढ़ा दी है। इसके दायरे में आने वाली सैकड़ों चीजे महंगी हो जाएंगी। सेवा शुल्क की दर दो फीसदी बढ़ने से आम आदमी की तो कमर ही टूट जाएगी। सेवाकर का दायरा 117 सेवाओं से बढ़ाकर 219 सेवाओं पर लागू कर दिया गया है। लगभग पूरा सेवा क्षेत्र टैक्स के दायरे में आ गया है। करों का यह बोझ मंदी की तरफ बढ़ती अर्थव्यवस्था में मांग को सीमित कर सकता है। इससे विकास प्रभावित होगा। वेतनभोगी कर्मचारियों को पहला झटका बजट से पहले कर्मचारी भविष्यनिधि के ब्याज में कटौती करके दिया गया है। आयकर सीमा 20 हजार रुपये बढ़ाकर मामूली राहत देने की कोशिश की गई है, लेकिन उससे कई गुना अधिक वसूल लिया गया है। बजट में खेती को लेकर कुछ कोशिशें की गई हैं। लेकिन उन पर अमल कैसे होता है, यह देखने वाली बात होगी। समाज के पिछड़े वर्गो और महिलाओं के लिए यह बजट निराशाजनक ही रहा है। आर्थिक सर्वे में स्वीकार किया गया है कि विकास का लाभ सभी लोगों तक नहीं पहुंच पा रहा है, लेकिन इस कमी को दूर करने का कोई संकल्प और प्रावधान बजट में नहीं किया गया है। सरकार ने अर्थव्यवस्था के बेहतर भविष्य का भरोसा दिलाने का प्रयास किया है, लेकिन दिसंबर में खत्म हुई तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि आर्थिक वृद्धि दर करीब छह फीसदी रह गई है। तीन साल में पहली बार ऐसा हुआ है, जब यह सात फीसदी से नीचे है। अब अगर औद्योगिक विकास दर में नई जान नहीं फूंकी गई तो न सिर्फ कुल जमा विकास दरों में कमी आएगी, बल्कि रोजगार के नए अवसर भी नहीं पैदा होंगे। भारत जैसे देश के लिए यह बहुत जरूरी है, जहां हर साल डेढ़ से दो करोड़ कामगार बढ़ जाते हैं। लेकिन इस बजट से तो महंगाई का प्रभाव औद्योगिक विकास पर पड़ेगा और इससे नए रोजगारों के सृजन में बाधा आएगी। आर्थिक सर्वेक्षण का कहना है कि उद्योगों की अधिकतम संभावनाओं को व्यावसायिक आत्मविश्वास बहाल करके अधिक उत्पादन बढ़ाने वाले निवेश से और बाधाओं को दूर करके ही हासिल किया जा सकता है। यह भी कहा गया है कि मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ाने पर सबसे ज्यादा ध्यान देना होगा, क्योंकि औद्योगिक क्षेत्र के विकास दर को 14 फीसदी तक पहुंचाना है तो मैन्युफैक्चरिंग की विकास दर 2022 तक 25 फीसदी पर पहुंच जानी चाहिए। इसके लिए जो कुछ तरीके सुझाए गए हैं, उनमें हैं प्रस्तावित मैन्युफैक्चरिंग जोन और कृषि उत्पादों की सप्लाई के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर हेतु जमीन उपलब्ध कराना, हाई वैल्यू एडीशन उद्योगों को प्राथमिकता देना, अधिक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को प्रोत्साहित करना आदि। पर खुद भारत सरकार की वित्तीय सेहत अच्छी नहीं है। इसलिए जब तक खेती की दशा में विशेष सुधार नहीं किए जाते हैं, तब तक आर्थिक विकास दर के लक्ष्य को पाना संभव नहीं होगा। कृषि कर्ज बढ़ाने में भलाई नहीं खेती आज भी हमारी अर्थव्यवस्था का मूलाधार है। पर खेती की दशा हमारी अर्थव्यवस्था का सबसे चिंताजनक पहलू है। जिस क्षेत्र से देश की दो तिहाई आबादी की आजीविका चलती हो, उसकी हालत बिगड़ती जा रही है। चालू वर्ष में कृषि वृद्धि दर का 2.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया है। चार फीसदी विकास दर को प्राप्त करने के लिए काफी प्रयास की जरूरत होगी, जिसकी उम्मीद कम दिखाई देती है। बजट से किसानों, बेरोजगारों और छोटे उद्यमियों को भी बहुत आशाएं थीं, लेकिन वे पूरी नहीं हुई। किसानों को कर्ज के लिए ज्यादा धनराशि मुहैया कराई गई है। संभव है कि इससे किसानों को कुछ राहत मिलेगी, लेकिन कृषि के क्षेत्र में सिर्फ कर्ज की राशि बढ़ा देने से ही समस्या खत्म नहीं हो जाएगी। खेती को जब तक लाभकारी नहीं बनाया जाएगा, किसानों का संकट खत्म नहीं होगा। केंद्रीय बजट से कम वेतन वाले करदाताओं की सबसे बड़ी अपेक्षा आयकर में राहत की थी। महंगाई को देखते हुए वेतनभोगी कर्मचारियों को उम्मीद थी कि कम से कम तीन लाख तक की वार्षिक आय को आयकर के दायरे से बाहर रखा जाएगा, लेकिन उनकी यह उम्मीद भी पूरी नहीं की गई। क्योंकि आयकर की छूट सीमा 20 हजार रुपये बढ़ाकर 2 लाख रुपये तक की गई है। वैसे भी कई सेवाओं को सेवा कर के दायरे में लाकर सरकार ने जनता पर करों का बोझ पहले से ही काफी बढ़ा रखा है। अब यदि आप अपने मोबाइल फोन में 500 रुपये का टॉपअप डलवाएंगे तो सिर्फ 440 रुपये की टॉकवैल्यू मिलेगी। 60 रुपये सेवा कर के कट जाएंगे। इसी तरह से तमाम सेवाओं पर आपको ज्यादा सेवा कर अदा करना पड़ेगा। सरकार के सामने विकास दर को बनाए रखना, महंगाई को पांच फीसदी पर बांधे रखना, कृषि को बढ़ावा देना और राजकोषीय घाटे को कम करने जैसी समस्याएं हैं। इन समस्याओं को हल करके ही जीडीपी की मौजूदा रफ्तार को बढ़ाया जा सकता है, लेकिन सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती विभिन्न योजनाओं के लिए आवंटित सरकारी धन के सदुपयोग की है। अगर धन के सदुपयोग को निश्चित नहीं किया जाता है तो तमाम कल्याणकारी योजनाओं का लाभ जनता को नहीं मिलेगा। बिना बजट घाटा बढ़ाए यदि सार्वजनिक निवेश बढ़ाना है तो राजस्व घाटे को कम करना होगा। काले धन पर बातें तो बहुत की जाती हैं, लेकिन उसे रोकने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं किया गया है। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने सरकार और प्रशासन की खामियों को भी समझा है और उसे ज्यादा सक्षम, प्रभावी और जनप्रिय बनाने के लिए सुधारों की जरूरत बताई है। सच भी यही है कि कृषि, आधारभूत और सामाजिक क्षेत्रों के विकास में सरकारों की नाकामी जगजाहिर हो चुकी है। असली समस्या तो प्रशासन को ईमानदार और संवेदनशील बनाने की ही है। सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि उदारीकरण के नतीजे आम लोगों तक पहुंचे और मुद्रा स्फीति की दर बढ़ने न पाए। सरकार को अपने संसाधनों की सीमा में बाहर जाने का कोई अधिकार नहीं है। सरकारी खर्चो में कटौती की कोई कोशिश नहीं की गई। बहुत ज्यादा उधार लेकर जीना वास्तव में भावी आमदनी की चोरी के अलावा कुछ नहीं है। सरकार पर कुल मिलाकर करीब 35 लाख करोड़ रुपये का कर्ज है। यह अत्यंत चिंता की बात है। दांवपेच का हथियार बनता बजट केंद्रीय वित्तमंत्री ने बिजली और बुनियादी ढांचे के मद में धनराशि बढ़ाई है। पर इन कार्यक्रम की सभी योजनाओं को लागू करने के लिए इस बजट में दो लाख करोड़ रुपये की जरूरत पड़ेगी। वित्तमंत्री इसका कोई उपाय नहीं कर पाए हैं। वैसे भी बजट अब देश की अर्थव्यवस्था की तस्वीर पेश नहीं करते हैं। यह राजनीतिक दलों के दांवपेच का हथियार बन गए हैं, जिसका इस्तेमाल राजनेता जनता को रिझाने और भरमाने के लिए करते हैं। देश की अर्थनीति को और अधिक उदार बनाना आवश्यक है। पर यह कार्य सरल नहीं है। इस बारे में पहली बात यह है कि उदारीकरण की क्रिया सिलसिलेवार होनी चाहिए, एक साथ बहुत तेजी के साथ नहीं। आज भी आधुनिकीकरण या विस्तार के लिए जो आवेदन दिए जाते हैं, उनमें लालफीताशाही के कारण बहुत देर हो जाती है और कई स्तरों पर नौकरशाही की निष्ठुरता और कठोरता भी देखने को मिलती है। हमारे कुल बजट की तीन चौथाई धनराशि उस निकम्मी और नकारा नौकरशाही पर खर्च होती है, जो इस देश की जनता और करदाताओं के ऊपर बोझ बनकर बैठी हुई है। इस नौकरशाही की सुख-सुविधाओं की कटौती करने की हिम्मत अभी तक किसी भी सरकार ने नहीं दिखाई है। पिछले 10 साल में तैयार कम से कम चार प्रशासनिक सुधारों की रिपोर्ट सामने आ चुकी है। ताजी रिपोर्ट मोइली समिति की है। इस समिति की कई सिफारिशें हैं, पर लागू नहीं की जा रही हैं। हमारी अफसरशाही अड़ंगे लगाने के सिवा कोई काम नहीं करती है। वास्तव में किसी भी राष्ट्र की प्रगति मुख्यतया इस बात पर निर्भर करती है कि उसके लोगों का समय और उनकी ऊर्जा किस हद तक उत्पादनकारी प्रयोजनों के लिए मुक्त है। लोगों की सारी शक्ति संभावित योग्यताओं का इस्तेमाल करके देश की दौलत बढ़ाने में लगनी चाहिए। (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)




आम लोगों की मुसीबतें बढ़ेंगी

- अश्विनी महाजन

गत 15 मार्च को संसद में पेश हुए आर्थिक सर्वेक्षण 2011-2012 में देश की आर्थिक समस्याओं के लिए अंतरराष्ट्रीय कारणों को जिम्मेदार ठहराने की बात को आगे बढ़ाते हुए वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने अपने बजट भाषण में देश में घटती आर्थिक वृद्धि दर के लिए अंतरराष्ट्रीय उठापठक का ही नतीजा बताया है। सरकार ने पिछले नौ सालों में (वर्ष 2008-09 के अपवाद को छोड़कर) 6.9 प्रतिशत की सबसे कम आर्थिक वृद्धि अनुमानित होने पर भी लगभग संतोष जताया है। सरकार ने स्वीकार किया है कि आर्थिक सर्वेक्षण 2010-11 में नौ प्रतिशत आर्थिक वृद्धि की अपेक्षा रखी थी। अगर ऐसा हो पाता तो अर्थव्यवस्था की काफी समस्याएं कम हो जातीं। आर्थिक सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि अगर हम अर्थव्यवस्था के विविध क्षेत्रों को देखें तो कृषि और सहायक गतिविधियों में 2.5 प्रतिशत, सेवा क्षेत्र में 9.4 प्रतिशत और औद्योगिक क्षेत्रों में 3.9 प्रतिशत की आर्थिक वृद्धि प्राप्त करने का अनुमान है। बजट में बताया गया है कि वर्ष 2011-2012 में राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 5.9 प्रतिशत रहने का अनुमान है। 2011-2012 का बजट पेश करते हुए वित्तमंत्री ने कहा था कि राजकोषीय घाटा 4.6 प्रतिशत रहेगा यानी जो राजकोषीय घाटा 4.13 लाख करोड़ रुपये अनुमानित किया गया था, वह बढ़कर अब 5.22 लाख करोड़ रुपये पहुंच गया है। बढ़ता हुआ राजकोषीय घाटा देश में मुद्रास्फीति के बढ़ने का मुख्य कारण बन रहा है। एक तरफ राजकोषीय घाटा पिछले वर्ष के अनुमान से कहीं आगे बढ़ गया है, दूसरी ओर जीडीपी की अनुमानित वृद्धि दर भी 9 प्रतिशत से घटकर मात्र 6.9 प्रतिशत ही रह गई है। अर्थव्यवस्था के लगभग सभी क्षेत्रों में वृद्धि दर प्रभावित हुई है, लेकिन सबसे ज्यादा असर औद्योगिक उत्पादन पर पड़ा है, जहां पिछली दो तिमाहियों में वृद्धि दर घटकर मात्र 0.4 प्रतिशत ही रह गई है। बढ़ते राजकोषीय घाटे और बढ़ती महंगाई के लिए जिम्मेदार अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के बारे में वित्तमंत्री चुप हैं। वास्तव में राजकोषीय घाटा बढ़ने से जब उसकी भरपाई अतिरिक्त मुद्रा छापकर की जाती है तो उसका असर कीमतों पर पड़ता है। बढ़ती महंगाई के कारण देश का विकास बाधित होता है। हम जानते हैं कि पिछले कुछ सालों से बढ़ती महंगाई से घबराकर आरबीआइ लगातार ब्याज दरों में वृद्धि कर रहा है। बढ़ती ब्याज दरों के कारण देश में उत्पादन लागत बढ़ती है और औद्योगिक उत्पादन बाधित होता है। पहले से ही मुद्रास्फीति की मार झेल रहे उद्योगों और उपभोक्ताओं पर वित्तमंत्री ने करों का भारी बोझ लाद दिया है। सेवा कर को बढ़ाकर 12 प्रतिशत और वस्तुओं पर करों में भारी वृद्धि करते हुए वित्तमंत्री ने मुद्रास्फीति की समस्या को और बढ़ा दिया है। बजट में वित्तमंत्री मांग को बढ़ाकर आर्थिक वृद्धि बढ़ाने की बात करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं है कि देश में मांग को बढ़ाने की भारी जरूरत है। देश में मांग बढ़ाने के लिए उपभोक्ता मांग और निवेश मांग दोनों को बढ़ाना होगा, लेकिन दोनों प्रकार की मांग को बढ़ाने के लिए जरूरी है कि ब्याज दरों को कम किया जाए। आज बढ़ती ब्याज दरें मध्यम वर्ग के लिए मुसीबत का कारण बनी हुई हैं। ऐसे मे घरों और उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बढ़ाने में कठिनाई आ रही है। उधर निवेश मांग भी घट रही है, क्योंकि अब निवेश करना पहले जैसा सस्ता नहीं रहा। इसलिए बजट में भले ही मांग आधारित विकास की बात कही गई है, लेकिन धरातल पर परिस्थितियां अनुकूल नहीं हैं। देश में मांग को बरकरार रखने के लिए महंगाई को बांधते हुए निवेश के वातावरण को पुष्ट करना होगा। देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर की भारी कमी है। देश में बिजली उत्पादन की नई इकाइयों का निर्माण भी काफी कम हो रहा है। खेती के लिए सिंचाई परियोजनाओं की गति भी मंद है। नए भंडार गृह और कोल्ड स्टोरेज की भी देश में भारी कमी है। बजट 2012-2013 में ढांचागत विकास के लिए करों कुछ छूट अवश्य दी गई है, लेकिन यह अपर्याप्त है। यह सच है कि सरकार के पास इन परियोजनाओं के लिए धन का अभाव है, लेकिन उस कारण से इन परियोजनाओं को रोका नहीं जा सकता। जरूरी है कि सरकार निजी क्षेत्र के सहयोग से टैक्सों में कमी ओर सब्सिडी के माध्यम से इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में सहयोगी बने। इससे दो लाभ होंगे, एक इस माध्यम से देश में मांग बढ़ेगी और दूसरी ओर ढांचागत विकास से देश के विकास को गति मिलेगी।

भा + रत = भारत (संस्कृति का सन्देश, स्वाभिमान का प्रतीक )

भा + रत = भारत (संस्कृति का सन्देश, स्वाभिमान का प्रतीक ) ----- भारत उस देश का नाम है, जो अपने में एक विशिष्ट आध्यात्मिक संस्कृति को संजोए हुए हैं I भारत दो शब्दों भा + रत से मिलकर बना है I भा का अर्थ है - आभा और रत का अर्थ है - संलग्न अर्थात जो देश प्रकाश, ज्ञान और आनंद की साधना में संलग्न रहा है, उसी का नाम है भारत I भारत विश्वगुरु रहा है I उसी ने बहुत पहले यह उदघोष किया - असतो माँ सदगमय, तमसो माँ ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय अर्थात असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और मृत्यु से अमरत्व की ओर बढ़ना I भारत ने इसी को जीवन का मूलमंत्र माना था ओर विश्व को भी उसने यह सन्देश दिया I सत्य, प्रकाश, आनंद और अमरत्व की इस यात्रा में जो चार पड़ाव मिलते हैं, उन्हें हमारे ऋषियों ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष शीर्षक चार पुरुषार्थों के रूप में व्याख्यायित किया है I इनके माध्यम से भारतीय ऋषियों ने आध्यत्मिक और भौतिक जीवन में जो संतुलन और सामंजस्य स्थापित किया है, वह अत्यंत दुर्लभ है I यहाँ अर्थ और काम भौतिक जीवन के पुरुषार्थ हैं, और धर्म तथा मोक्ष आध्यात्मिक जीवन के चारों पुरुषार्थों में धर्म को सर्वप्रथम स्थान दिया गया है, और धर्मों रक्षत: अर्थात धर्म की रक्षा से ही सबकी रक्षा होती है, कहकर धर्म की महत्ता स्थापित की है I सुदूर अतीत में सर्वभूत हितेरत: अर्थात वसुधैव कुटुम्बकम की जो उदघोषणाए की गई थीं, वे सब एक धार्मिक चेतना का ही परिणाम थीं I अंग्रेजो ने भारत को इंडिया नाम दिया I इस शब्द में वह शक्ति नहीं है, जो भारत के उपरोक्त गुणों को ध्वनित और व्यंजित कर सके I भारत के इंडिया शब्द का प्रयोग स्पष्ट करता है की भले ही अंग्रेजो की गुलामी से हम स्वतंत्र हो गए हैं, पर मानसिक दासता से अभी भी मुक्त नहीं हो सके हैं I हमें इंडिया और अंग्रेजी, दोनों से ही अपने को मुक्त करना है तथा भारत, भारतीय संस्कृति और अपनी मातृभाषा हिंदी से जुड़ना है, तभी हम सच्चे अर्थों में भारतीय कहलाने के अधिकारी होंगे 

what is bank?

बैंक:- एक बैंकर या बैंक एक वित्तीय संस्थान (financial institution)है


जिसकी प्राथमिक गतिविधि ग्राहकों के लिए भुगतान के एक एजेंट के रूप में

उधार लेने और उधार देने का कार्य करना है

पहला आधुनिक बैंक इटली के जेनोवा में 1406 में स्थापित किया गया था, इसका

नाम बैंको दि सैन जिओर्जिओ (Banco di San Giorgio) (सेंट जॉर्ज का बैंक)

था

कई अन्य वित्तीय गतिविधियों समय के साथ जोड़ा गया था. उदाहरण के लिए बैंक

वित्तीय बाजारों में महत्वपूर्ण खिलाडी हैं और निवेश फंड जैसे वित्तीय

सेवाओं की पेशकश कर रहे हैं. कुछ देशों में जैसे जर्मनी,बैंक औद्योगिक

निगमों के प्राथमिक मालिक हैं, जबकि अन्य देशों में जैसे संयुक्त राज्य

अमेरिका में बैंक गैर वित्तीय कंपनियों स्वक्मित्व से निषिद्ध रहे

हैं.में जापान, बैंक कों आमतौर पर पार शेयर होल्डिंग इकाई ज़ाइबत्सू

(zaibatsu).के रूप में जाना के संबंध रहे हैं फ़्रांस में

"Bancassurance" उच्च, उपस्थित है, जैसा की अधिकांश बैंक अपने ग्राहकों

को बिमा सेवा को प्रस्तुत करते हैं (और अब अचल संपत्ति सेवा में )

शब्द का मूल: बैंकशब्द इतालवीशब्द बैंको "डेस्क / बेंच"से व्युत्पन्न

होता है, जो पुनर्जागरणके दौरान Florentines बैंकरों द्वारा प्रयोग किया

गया , जिन्होंने अपने लेनदेन को एक मेज़ के ऊपरएक हरे मेज़पोश द्वारा

ढककर प्रयोग किया [5] हालाँकि, बैंकिंग गतिविधियों के निशान प्राचीन समय

में भी रहे हैं.

वास्तव में,शब्द अपना मूल प्राचीन रोमन साम्राज्य में पाता है, जहा

साहूकार macella कहे जाने वाले सलग्न बरामदे में अपने स्टाल्स लगते थे,

जो bancu कहा जाने वालैक लंबा बेंच था और जिससे बैंको और बैंक शब्द बना

एक पैसे बदलनेवाला के रूप में,bancu का व्यापारी ने उतना निवेश नही किया

क्योंकि मात्र विदेशी मुद्रा को केवल रोम के कानूनी मुद्रा में -शाही

टकसाल के.[6]

बैंकिंग चैनलों

बैंकों को अपने बैंकिंग और अन्य सेवाओं का उपयोग करने के लिए कई अलग अलग

चैनलों की पेशकश करते हैं

एक शाखा, बैंकिंग केंद्र या वित्तीय केन्द्र एक खुदरा केन्द्र है जहा एक

बैंक या वित्तीय संस्था अपने ग्राहकों को सेवा का सामना करने के लिए एक

व्यापक श्रेणी उपलब्ध कराता है

• एटीएम (ATM)automatic teller machine एक कम्प्यूटरीकृत दूरसंचार उपकरण

है जो एक वित्तीय संस्थान के ग्राहकों को सार्वजनिक स्थान में वित्तीय

लेनदेन की एक मानव क्लर्क या बैंक टेलर की आवश्यकता के बिना की एक विधि

है अधिकांश बैंकों के पास अब शाखाओं से अधिक एटीएम है, और एटीएम

प्रयोक्ताओं की एक व्यापक श्रेणी के लिए सेवाओं की एक व्यापक श्रेणी

उपलब्ध करा रहे हैंहांगकांग में उदाहरण के लिए, अधिकाँश ऐ टी एम् किसी को

भी किसी के ग्राहक के खाते में राशि जमा करने के लिए नोट को भर कर और

खाता नंबर दालकर सक्षम करते हैं इसके अलावा,अधिकाँश ऐ टी एम् कार्ड

धारकों को अन्य बैंकों से अन्य बैंकों से अपने खाते की शेष राशि प्राप्त

करने के लिए और नकद निकालने में योग्य बनता है चाहे कार्ड एक विदेशी बैंक

द्वारा जारी किया गया हो

• मेल (Mail)डाक व्यवस्था का हिस्सा है,जो स्वयं एक व्यवस्था है जबकि

लिखित दस्तावेजों आमतौर लिफाफे में जड़े , अन्य विषय शामिल किए और भी

छोटे पैकेज दुनिया भर के गंतव्यों के लिए दिया जाता हैयह चेक जमा करने के

लिए और प्रयोग किया जा सकता है और बैंक को तृतीय पक्षों के लिए पैसे का

भुगतान करने के लिए आदेश भेजने के लिए किया जा सकता है बैंक सामान्यतः

ग्राहकों को आवधिक खाते का विवरण देने के लिए डाक का प्रयोग करते हैं

• टेलीफोन बैंकिंग (Telephone banking) एक सेवा है जो अपने ग्राहकों को

टेलीफोन पर लेनदेन प्रदर्शन करने की अनुमति देता है और एक वित्तीय

संस्थान द्वारा प्रदान की जाती हैयह सामान्य रूप से (बिजली के लिए) जैसे

प्रमुख बिल्लेर्स से बिल के लिए बिल भुगतान करता है

• ऑनलाइन बैंकिंग (Online banking)एक शब्द का लेनदेन का भुगतान आदि का

प्रदर्शन के लिए उपयोग किया जाता है. इंटरनेट पर एक बैंक, क्रेडिट यूनियन

या समाज निर्माण की सुरक्षित वेबसाइट के मध्यम से

बैंकों के प्रकार बैंकों की गतिविधियों खुदरा बैंकिंग (retail

banking)में, व्यक्तियों और छोटे व्यवसायों से सीधेनिपटने में , व्यापार

बैंकिंग (business banking)मध्य तक बाजार में कारोबार करने के लिए सेवाएं

प्रदान करने, कॉर्पोरेट बैंकिंग, निर्देशित बड़े व्यावसायिक संस्थाओं में

निजी बैंकिंग (private banking)उच्च निवल मूल्य के लिए धन प्रबंधन सेवाएं

प्रदान व्यक्तियों और परिवारों; और निवेश बैंकिंग, (investment banking)

वित्तीय बाजारों (financial markets)पर संबंधित गतिविधियों के लिए

विभाजित किया जा सकता हैअधिकांश बैंकों लाभ-, निजी उद्यम कर रहे

हैं.हालांकि, कुछ सरकार द्वारा, स्वामित्व में हैं या गैर लाभ कर रहे

हैं.

• सेंट्रल बैंक (Central bank)सामान्यतह सरकार के स्वामित्व वाले बैंक

हैं जो प्रायः अर्ध के -विनियामक जिम्मेदारियों को पुरा करते है जैसे

वाणिज्यिक बैंकों का पर्यवेक्षण या नकद या ब्याज दर (interest rate) को

नियंत्रित करना वे आमतौर पर बैंकिंग प्रणाली को तरलता प्रदान करते हैं और

एक संकट की घड़ी में ऋणदाता अंतिम उपाय के (Lender of last resort) के

रूप में कार्य करते हैं

खुदरा बैंकों के प्रकार

1. वाणिज्यिक बैंक (Commercial bank): शब्द एक सामान्य बैंक के लिए एक

निवेश बैंक से यह भेद करने के लिए इस्तेमाल किया.गहरे अवसाद (Great

Depression)के बाद यु एस कांग्रेस ने चाहा की बैंक केवल बैंकिंग के कार्य

में ही व्यस्त रहे, जबकि निवेश बैंक पूंजी बाजार (capital market)

गतिविधियों तक सिमित थे तब से दोनों को अधिक समय तक अलग स्वामित्व में

नही रखना है, कुछ "वाणिज्यिक बैंक"शब्द का उपयोग एक बैंक या बैंक के एक

खंड के सन्दर्भ में करते हैं जो अधिकांशतः निगमों या बड़े कारोबारों में

से ज्यादातर के साथ जमा और कर्जसंबंधित है

2. समुदाय बैंक (Community Bank):स्थानीय संचालित वित्तीय संस्थाओं जो

कर्मचारियों को अपने ग्राहकों और भागीदारों की सेवा के लिए निर्णय बनाने

के लिए सक्षम है

3. सामुदायिक विकास बैंक (Community development bank) :विनियमित बैंक जो

कम सेवा वाले बाज़ार या आबादी को वित्तीय सेवाओं और ऋण प्रदान करता है

4. डाक बचत बैंक (Postal savings bank): बचत बैंकों राष्ट्रीय डाक

प्रणालियों के साथ जुड़े.

5. निजी बैंक (Private bank)s: उच्च निवल मूल्य व्यक्तियों की संपत्तियों

का प्रबंधन.

6. अपतटीय बैंक (Offshore bank): कम कराधान और विनियमन के क्षेत्राधिकार

में केंद्रित बैंक कई विदेशी बैंकों आवश्यक रूप से निजी बैंक रहे हैं.

7. बचत बैंक (Savings bank): यूरोप में, बचत बैंक की जड़े १८ वीं 19 वीं

शताब्दी में थी उनका मूल उद्देश्य जनसंख्या के सभी स्तर के लिए सुगम बचत

उत्पादों को उपलब्ध कराने के लिए गया थाकुछ देशों में, बचत बैंक

सार्वजनिक पहल पर बनाया गया थाजबकि अन्य जगह पर सामाजिक रूप से प्रतिबद्ध

व्यक्तियों को आवश्यक बुनियादी ढांचे के निर्माण किया आजकल,यूरोपीय बचत

बैंक खुदरा बैंकिंग के भुगतान पर अपना ध्यान केंद्रित रखा है :

व्यक्तियों या छोटे और मध्यम आकार के उद्यमों के लिए भुगतान, बचत उत्पाद,

ऋण और बिमा इस खुदरा ध्यान के अलावा,वे अपने विकेन्द्रीकृत वितरण नेटवर्क

के द्वारा वाणिज्यिक बैंकों से भिन्न हैं, स्थानीय और क्षेत्रीय पहुच

प्रदान कर और व्यवसाय और समाज के लिए सामाजिक दृष्टि से जिम्मेदार

दृष्टिकोण से प्रदान करते हैं

8. इमारत समाजों (Building societies) और Landesbank (Landesbank)s:

खुदरा बैंकिंग आचरण.

9. नैतिक बैंक (Ethical bank) : वो बैंक जो सभी संचालनों में पारदर्शिता

को प्राथमिकता देते हैं और केवल सामाजिक-जिम्मेदार निवेश करने पर विचार

करते हैं

10. इस्लामी बैंक (Islamic bank) वह बैंक हैं जो कि इस्लामी सिद्धांतों

के अनुसार चलते हैं