Tuesday, March 20, 2012

बेचैनी बढ़ाता बीजिंग

(लगातार रक्षा खर्च बढ़ा रहे चीन की सैन्य तैयारियों से एशिया में चिंताएं बढ़ती देख रहे हैं हर्ष वी पंत)


एक और साल और पहले से भी बड़ा चीनी रक्षा बजट! एक बार फिर चीन ने अपने सैन्य खर्च में दहाई अंकों की बढ़त की है। इससे चीन की मंशा को लेकर चिंता बढ़ गई है। बीजिंग ने घोषणा की है कि 2012 के लिए उसका रक्षा बजट पिछले साल 95.6 अरब डॉलर से बढ़कर इस साल 106 अरब डॉलर हो गया है। यह 11.2 फीसदी की बढ़ोतरी है। इस राशि में चीनी सेना के कई बड़े खर्चो का समावेश नहीं है। इनमें साइबर युद्ध व अंतरिक्ष क्षमताओं को बढ़ाने के साथ-साथ विदेशी साजोसामान की खरीदारी शामिल नहीं है। इस बढ़ी हुई राशि का मोटा भाग चीनी नौसेना, वायुसेना और दूसरी सैन्य टुकडि़यों के खाते में गया है, जो सामरिक परमाणु सेनाओं को संचालित करती हैं। सैन्य बजट की घोषणा करने वाले नेशनल पीपुल्स कांग्रेस के प्रवक्ता के अनुसार, सैन्य खर्च में वृद्धि चीनी आर्थिक विकास के अनुरूप है। चीन के सकल घरेलू उत्पाद और सैन्य खर्च में अनुपात अमेरिका और ब्रिटेन जैसे अन्य विकसित देशों की तुलना में अब भी काफी कम है। उनकी दलील है कि चीन शांतिपूर्ण विकास के पथ पर चलने को प्रतिबद्ध है और ऐसी रक्षा नीति का पालन कर रहा है, जिसकी प्रकृति शांतिपूर्ण है। एक उभरती हुई शक्ति चीन पिछले दशक से सैन्य शक्ति को बढ़ाने में जुटा हुआ है ताकि वह अपने सामरिक हितों की सुरक्षा और विस्तार कर सके। 23 लाख सैनिकों वाली विश्व की सबसे बड़ी सेना रखने वाला चीन अपनी परमाणु शक्ति में नाटकीय सुधार कर रहा है। साथ ही वह परंपरागत सैन्य क्षमताओं को और अधिक प्रभावी बना रहा है। चीन की सैन्य मजबूती एशिया और उसके परे बढ़ती चिंता का कारण बनी हुई है। इस पर पूरा विश्व एकमत है कि बीजिंग का असल रक्षा बजट घोषित बजट से करीब दो गुना अधिक है। चीनी सरकार के आधिकारिक आंकड़ों में नए हथियारों की खरीद, अनुसंधान और चीन की बेहद गोपनीय सेना के लिए अन्य बड़ी खरीदारियों का उल्लेख नहीं होता। परिणामस्वरूप, रक्षा बजट की असल राशि घोषित राशि से कहीं अधिक होती है। अनुमान है कि पिछले साल ही चीन ने घोषित 95.6 अरब डॉलर से कहीं अधिक 160 अरब डॉलर अपनी रक्षा पर खर्च किए हैं। चीन अपनी सैन्य क्षमताओं में सुधार का बचाव इस दलील के आधार पर करता है कि उसे ताइवान संबंधी आपात स्थिति के मद्देनजर अपनी आक्रामक क्षमताओं का विकास करने की जरूरत है, किंतु यह तो महज बहाना है। स्पष्ट तौर पर उसकी नजरें अमेरिका पर गड़ गई हैं। चीन पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य क्षमता को सीमित करना चाहता है। वह 1996 की उस शर्मिदगी की पुनरावृत्ति से बचना चाहता है, जब अमेरिकी नौसैनिक बेड़ा चीन के उकसावे की परवाह न करता हुआ ताइवान की खाड़ी से होकर गुजरा था। इसमें हैरत नहीं है कि सीमा से परे आक्रामक क्षमताओं के विस्तार के साथ चीन द्वारा सेना को लगातार मजबूत करने से अमेरिका और चीन के पड़ोसियों की बेचैनी बढ़ती जा रही है। चीन सेना पर खर्च में ऐसे नाजुक समय में बेहिसाब बढ़ोतरी कर रहा है जब जापान, भारत और दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के साथ सीमा विवाद पर उसका रुख आक्रामक हो रहा है। ओबामा प्रशासन बीजिंग से मांग कर रहा है कि वह सेना बजट में पारदर्शिता लाए और दोनों देशों की सेनाओं के बीच संपर्क को और गहरा करे। चीन के उपराष्ट्रपति जी जिनपिंग की हालिया अमेरिकी यात्रा पर यह मांग फिर से दोहराई गई है। जी जिनपिंग को ही चीन का अगला नेता माना जा रहा है। चीनी रक्षा नीति की बेहतर समझ के लिए अमेरिका सामरिक सुरक्षा वार्ता के नाम से चीन के साथ औपचारिक बातचीत कर रहा है, किंतु अभी तक इसके उत्साहजनक परिणाम नहीं निकले हैं। इस वार्ता में बीजिंग और वाशिंगटन के वरिष्ठ नागरिक और सैन्य अधिकारी भाग लेते हैं। चीन का वृहद गोपनीय सैन्य आधुनिकीकरण कार्यक्रम अनुमान से अधिक तेजी से परिणाम दे रहा है। चीन प्रशांत क्षेत्र में अमेरिकी सैन्य ताकत को चुनौती देने की तैयारी कर रहा है। चीन सोवियत युग के यूक्रेनियाई एयरक्राफ्ट कैरियर के पुनर्निर्माण के बाद इसे अगले साल तक पानी में उतारने का इरादा रखता है। शंघाई के निर्माण स्थल में और भी कैरियर्स पर काम चल रहा है। चीन का नौसैनिक बेड़ा एशिया में सबसे बड़ा है। वह तेजी से परमाणु शक्तिचालित जहाज और पनडुब्बियों का निर्माण कर रहा है। चीन की जहाजरोधी बैलेस्टिक मिसाइल प्रणाली (एएसबीएम) का लक्ष्य अमेरिकी जहाजों को निशाना बनाना है। शुरुआती परीक्षणों पर खरी उतरने के बाद यह अपेक्षा से पहले ही चीनी सेना के बेड़े में शामिल हो चुकी है। अधिक उन्नत और आधुनिक हथियारों और लड़ाकू विमानों को निर्मित करने का चीन का कार्यक्रम का नतीजा है जे-20 स्टील्थ फाइटर जेट। पिछले साल ही उसने परीक्षण उड़ान भरी थी। चीन पहले ही सेटेलाइट रोधी युद्ध प्रणाली में अपना जौहर दिखा चुका है। वह परमाणु हथियारों से लैस मिसाइलों को मोबाइल लांचरों और अत्याधुनिक पनडुब्बियों में फिट कर चुका है। परमाणु हथियारों का पहले इस्तेमाल न करने की अपनी नीति से पलटते हुए चीनी नेतृत्व ने संकेत दिए हैं कि अगर वे देश पर खतरा मंडराते देखेंगे तो पहले हमला करने से भी नहीं चूकेंगे। इस प्रकार चीन ने परमाणु हमले को लेकर विश्व के संदेह और चिंताओं को बढ़ा दिया है। परमाणु हथियार का पहले इस्तेमाल करने या न करने को लेकर पीएलए में बहस तेज होती जा रही है। विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था चीन एक उभरती हुई शक्ति है और इसकी विश्व में धाक जम रही है। वह अपने हितों की रक्षा के लिए अपनी सेना को हमेशा तैयार रखना चाहता है, किंतु सेना के आधुनिकीकरण में चीन द्वारा अपनाई जाने वाली गोपनीयता से विश्व की चिंताएं बढ़ रही हैं। चीन पारदर्शिता में विश्वास नहीं रखता। वास्तव में, चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी सुन जू के सिद्धांत पर अमल करती है। सुन जू ने कहा है, युद्धकला का सार दुश्मन को स्तब्ध करने में है। ऐसे समय जब भारत और चीन के बीच दिन पर दिन तनाव बढ़ता जा रहा है, भारत सरकार ने अपने ढीले-ढाले रवैये से उबरने की इच्छाशक्ति का प्रदर्शन नहीं किया है। इसके कारण ही भारत के सैन्य शक्ति के रूप में उभरने के तमाम दावे थोथे लगते हैं। भारत और चीन की सैन्य क्षमताओं के बीच का अंतर खतरनाक ढंग से बढ़ रहा है। यह पहलू किसी भी क्षेत्र में भारत के प्रमुख क्षेत्रीय और वैश्विक खिलाड़ी बनने में बाधाएं खड़ी करता रहेगा।

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