Tuesday, March 6, 2012

सीरिया का संकट और अमेरिका

- पुष्परंजन




क्या अमेरिका के कहने पर भारतीय कंपनी सीरिया में अपना जमा-जमाया कारोबार छोड़ दे? यह किस तरह की चौधराहट है? पहले इरान से व्यापार खत्म करने के लिए दबाव और अब सीरिया की बारी!







सीरिया की पहचान कइ सारे ह्लवालामुखी के कारण भी है इनमें से चार तो सुप्त हैं, लेकिन दो ह्लवालामुखी जागृत हैं प्रकृति ने सीरिया का जो किया, सो किया अब इस मुल्क में पश्चिमी देशों के सहयोग से सत्ता परिवतन के नाम पर जो ’जन ह्लवालामुखी‘ तैयार हो रही है, वह कभी भी फट सकती है इराक, इजराइल, जॉडन, लेबनान, तुकी और भूमध्यसागर से घिरे सीरिया के बारे में अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन ने भविष्यवाणी की है कि यहां कभी भी गृह युद्ध छिड़ सकता है



1963 से ही सीरिया में बाथ पाटी सत्ता में है संयुक्त राष्ट­ की मानें तो पिछले साल 26 जनवरी से छिड़ी सत्ता परिवतन की लड़ाइ में 5,400 लोग मारे गये हैं मानवाधिकारवादियों का तो दावा है कि आठ हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं गुजरे रविवार को संविधान सुधार के लिए मतसंग्रह में हिंसा हुइ और सौ से अधिक लोग मारे गये राष्ट­पति बशर अल-असद ने 894 प्रतिशत मतदाताओं से 2028 तक सत्ता में बने रहने का लाइसेंस ले लिया है नाराज यूरोपीय संघ ने सीरिया के खिलाफ और भी कड़े प्रतिबंध लगाने की घोषणा कर दी है अमेरिका और उसके मित्र देश हर हाल में राष्ट­पति अल-असद को सत्ता से उतारने की शपथ ले चुके हैं बशर के वालिद हफीज अल-असद 2000 में सिधार जाने से पहले 29 साल तक सीरिया की सत्ता पर विराजमान रहे उनके उत्तराधिकारी बशर अल-असद राष्ट­पति बनने से पहले आंखों के डॉक्टर थे और राजनीति से दूर रहा करते थे



’पश्चिमी क्लब‘ का आरोप है कि सीरिया हर समय लेबनान के अंदरूनी मामलों में टांग अड़ाता है 14 फरवरी 2005 को लेबनान के प्रधानमंत्री रफीक हरीरी की हत्या में सीरिया का हाथ बताया जाता है फिलिस्तीनी अतिवादी सीरिया में पनाह लेते रहे हैं आरोप यह भी है कि मानवाधिकार हनन में सीरिया की मास्टरी है देह व्यापार से लेकर आतंकवाद, हवाला व ड­ग तस्करी को सीरिया के शासक ब़ढावा देते रहे हैं पर सवाल यह है कि पश्चिम समथक सीरिया के पड़ोसी देश इजराइल, तुकी, लेबनान क्या दूधके धुले हैं?



सीरिया अमेरिकी क्लब की हिट लिस्ट में आज से नहीं, पिछले चार दशकों से है 1971 में सीरिया ने अपने बंदरगाह शहर तारतुस में रूसी नौसैनिक अड्डा बनाने की अनुमति देकर अमेरिका की नींद उड़ा दी थी भूमध्यसागर में रूस का यह अकेला नौसैनिक अड्डा है, जिससे बचने के लिए 2008 में अमेरिका ने पोलैंड समेत पूवी यूरोप में परमाणु प्रषोपास्त्र प्रतिरषा कवच बनाने की ठान ली थी 2010 तक रूस सीरिया को ड़ेढ अरब डॉलर के हथियार दे चुका था पिछले वष भी रूस सीरिया को चार अरब डॉलर के हथियार भेजने का समझौता कर चुका है इसी साल 4 फरवरी को संयुक्त राष्ट­ सुरषा परिषद में सीरिया के खिलाफ प्रतिबंध प्रस्ताव चीन और रूस के वीटो के कारण पास नहीं हो सका सीरिया को इससे शह मिलती गयी और चीन-रूस के खिलाफ गुस्सा ब़ढता गया है



यह नोट करने वाली बात है कि संयुक्त राष्ट­ में ’वीटो‘ के कारण जो प्रस्ताव गिरता है, वही प्रस्ताव 27 सदस्यों वाले यूरोपीय संघ में पास कराया जाता है इरान के साथ भी ऐसा ही हुआ था अमेरिकी मित्र मंडली उन देशों के पीछे भी पड़ी है, जो सीरिया से व्यापार कर रहे हैं भारत उनमें से एक है भारत पर दबाव है कि वह सीरिया में 115 अरब डॉलर के निवेश वाली योजना स्थगित कर दे भारत-चीन साझे रूप से सीरिया में तेल की खोज, दोहन-प्रशोधन और उसकी ’मार्केटिंग‘ में शामिल हैं सवाल यह है कि क्या अमेरिका के कहने पर भारतीय कंपनी ओएनजीसी ’विदेश’ सीरिया में अपना जमा-जमाया कारोबार छोड़ दे?यह किस तरह की चौधराहट है? पहले इरान से तेल लेने तथा व्यापार समाप्त करने के लिए भारत पर दबाव और अब सीरिया की बारी!



सीरिया से भारत के रिश्ते कोइ दो-चार दशक के नहीं हैं भारत में जो पहला चच स्थापित हुआ था, वह सीरियन चच ही था उसकी स्थापना करने वाले यीशु मसीह के 12वें प्रचारक सेंट थॉमस पहली सदी में केरल आये थे और फिर यहीं के होकर रह गये



देखने में तो यही लगता है कि सीरिया में एक तानाशाह शासन है और उसका हटना जरूरी है लेकिन व्यवस्था परिवतन की ठेकेदारी अमेरिका और उसके पश्चिमी मित्रों ने ही क्यों ले रखी है? भूमध्यसागर वाले इलाके के लोगों को पता है कि इस मुहिम में अमेरिका, तुकी और इजराइल की तिकड़ी सबसे अधिक सक्रिय है इजराइली खुफिया मोसाद, ब्रिटेन की एमआइ-6, तुकी की ’एमआइटी‘ और सीआइए के जासूसों ने सीरिया में बाथ पाटी की सत्ता उखाड़ने को नियमित रूप से हथियार, पैसे और भाड़े के सैनिक भेजे हैं



अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारी विक्टोरिया नूलैंड ने जून 2011 में स्वीकारा था कि बहुत सारे सीरियाइ नागरिक हमारे संपक में हैं, जो व्यवस्था परिवतन चाहते हैं पिछले साल 18 माच को जॉडन की सीमा से लगे दारा में जिस जनक्रांति की शुरुआत हुइ थी, उसमें इजराइल समथक ’सलाफिस्ट ग्रुप‘ के लोग थे इन्हें पैसा और हथियार सऊदी अरब से दिये गये थे अब तो सावजनिक रूप से अमेरिका समथक दो अरब देशों ने विद्रोहियों को हथियार और पैसा देने की बात कही है ऐसे में पिछले हफ्ते ट्यूनीशिया में ’फ्रेंड्स ऑफ सीरिया‘ जैसे सम्मेलन का औचित्य क्या रह जाता है? तुकी और बल्गारिया में भी माच-अप्रैल में सीरिया पर सम्मेलन होना है



सवाल यह है कि सीरिया में जो निदोष नागरिक मारे जा रहे हैं, उसके अकेले जिम्मेवार सीरियाइ राष्ट­पति बशर अल-असद ही क्यों हैं? अमेरिका और यूरोपीय संघ क्यों नहीं? तो क्या इस तरह के तख्तापलट अभियान में भारत को भी शामिल होना चाहिए? निश्चित रूप से नहीं!

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