Friday, February 17, 2012

मिसाइलरोधी रक्षा प्रणाली

भारत की मिसाइल ताकत के मामले में 10 फरवरी का दिन ऐतिहासिक रहा। इस दिन भारतीय वैज्ञानिकों ने मिसाइलरोधी सुरक्षा प्रणाली को और अधिक सक्षम बनाते हुए इसका शानदार सफल परीक्षण किया। इस परीक्षण को ओडिशा के समुद्र तट पर दो स्थानों से संचालित किया गया। एकीकृत परीक्षण केंद्र के निदेशक एसपी दास के मुताबिक परीक्षण के दौरान दुश्मन मिसाइल के रूप में पृथ्वी मिसाइल का इस्तेमाल करते हुए इसे तीन मिनट पहले प्रक्षेपण स्थल से एक मोबाइल लांचर से दागा गया। इसके तीन मिनट बाद चांदीपुर से लगभग 70 किलोमीटर दूर व्हीलर द्वीप पर तैनात इंटरसेप्टर एडवांस एयर डिफेंस यानी एएडी मिसाइल को समुद्रतट के किनारे पर लगे राडारों से संकेत मिले और इसने पृथ्वी को ध्वस्त करने के लिए उड़ान भरी। इस इंटरसेप्टर मिसाइल ने समुद्र से तकरीबन 15 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी मिसाइल का रास्ता रोका और चंद सेकेंडों में उसे ध्वस्त कर दिया। शत्रु की किसी भी हमलावर मिसाइल को जमीन पर गिरने से पहले उड़ान के दौरान आसमान में ही नष्ट कर देने वाली मिसाइल को इंटरसेप्टर कहा जाता है। दुश्मन की आक्रामक मिसाइलों के खतरे से निपटने के लिए अभेद्य कवच विकसित करने के प्रयास वर्ष 1999 में प्रारंभ कर दिए गए थे। इस कवायद का परिणाम सन 2006 में तब सामने आया जब 27 नवंबर को इसका प्रथम सफल परीक्षण किया गया। बाद में 6 दिसंबर 2007 एवं 6 मार्च 2009 को इसके सफल परीक्षण हुए। इंटरसेप्टर मिसाइल के संशोधित स्वरूप का अगला परीक्षण 14 मार्च 2010 को व्हीलर द्वीप से किया जाना था, लेकिन मिसाइल की उप प्रणाली में आई तकनीकी खामियों के कारण इसे टाल दिया गया। फिर 15 मार्च 2010 को परीक्षण के समय पृथ्वी मिसाइल अपने पूर्व निर्धारित पथ से भटक गई जिस वजह से वैज्ञानिकों को अंतिम समय में परीक्षण टालना पड़ा। इसके बाद 26 जुलाई 2010 एवं 6 मार्च 2011 को इसके पांचवे व छठे परीक्षण सफल रहे थे। इस सुरक्षा प्रणाली सिस्टम से शत्रु की तरफ से आ रही मिसाइल को पहले राडार या अन्य उपकरण पकड़ते हैं और बाद में इसके संकेत सिस्टम इंटरसेप्टर को जानकारी देता है इंटरसेप्टर तेज गति से आगे बढ़कर शत्रु की मिसाइल को बीच रास्ते में ही ध्वस्त कर देती है। वैज्ञानिकों के अनुसार इन परीक्षणों के परिणामों और इंटरसेप्टर मिसाइल के घातक प्रभावों का विश्लेषण किया जा रहा है। लगभग 7.5 मीटर लंबी इंटरसेप्टर एक चरणीय ठोस रॉकेट प्रोपेल्ड निर्देशित मिसाइल है। इसमें उन्नत किस्म की इंटीरियल नैवीगेशन प्रणाली लगी है जो इसे सही दिशा देने और जरूरत के हिसाब से उसमें बदलाव करने में सक्षम है। यही प्रणाली इसकी मारक क्षमता को अचूक बनाती है। यह मिसाइल आधुनिक दिशा सूचक प्रणाली से भी सुसज्जित है। इस इंटरसेप्टर मिसाइल में राडार व हमलावर मिसाइल का पता लगाने के लिए अपना डाटा लिंक, आंतरिक संचालन प्रणाली तथा सिक्योर डाटा लिंक होता है। इंटरसेप्टर मिसाइल शत्रु द्वारा दागी गई किसी भी विध्वसंक मिसाइल की गति, दिशा व समय आदि की गणना करके उसे अति शीघ्र हवा में नष्ट करने की क्षमता रखती है। इसके इंफ्रारेड सेंसर व संवेदनशील कैमरे आसमान की गतिविधियों की सूचना शीघ्र देते हैं। इससे उसे निशाने में लेना आसान हो जाता है। चूंकि इसे मोबाइल लांचर से भी छोड़ा जा सकता है इसलिए युद्धकाल में इसकी क्षमता और भी बढ़ जाती है। इस मिसाइल को द्विस्तरीय बैलिस्टिक मिसाइल रक्षा प्रणाली की योजना के तहत विकसित किया गया है। यह पूर्ण रूप से स्वदेश निर्मित सुपरसोनिक मिसाइल है। 50 किलोमीटर की ऊंचाई तक शत्रु की मिसाइल को मार गिराने वाली इंटरसेप्टर मिसाइल को अंत: वायु मंडलीय मिसाइल भी कहा जाता है। यह मिसाइल एडवांस एयर डिफेंस होती है। अभी तक यह तकनीक अमेरिका, रूस, चीन, फ्रांस, इटली, ब्रिटेन व इजरायल के पास ही है। अब इस सूची में भारत जुड़ गया है। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) एएडी मिसाइल के सफल परीक्षण पर डॉ. लक्ष्मीशंकर यादव की टिप्पणी मिसाइलरोधी रक्षा प्रणाली

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