Sunday, February 26, 2012

संघष और प्रतिरोध के सौ वष

दषिाण अफ्रीका में 1912 में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की स्थापना में महात्मा गांधी का महत्वपूण सहयोग था, जिन्होंने तब तक रंगभेद के खिलाफ व्यापक जनसंघष की शुरुआत कर दी थी

आज से सदी भर पहले जनवरी 1912 में अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस की स्थापना अफ्रीका के इतिहास में अविस्मरणीय घटना थी उसके साथ अफ्रीका महाद्वीप के शताब्दियों लंबे शोषण और अपमान की समाप्ति की शुरुआत हुइ वैसे, उस समय न तो दुनिया ने और न ही दषिाण अफ्रीका की गोराशाही ने उस पर कोइ ध्यान दिया था मोहनदास करमचंद गांधी उस समय निष्क्रिय प्रतिरोध आंदोलन में ठहराव आने के कारण जोहानिसबग के निकट अपने ताल्सताय फॉम पर ट­ांसवाल आंदोलनकारियों के कैदियों के परिवारों और जेल से छूट कर आये आंदोलनकारियों की देखभाल कर रहे थे और उन्होंने इस घटना को ‘अफ्रीका के जागरण का प्रतीक’ कहते हुए उसका स्वागत किया था



सन् 1906 से गांधी अहिंसक क्रांतिकारी और जन नेता बन चुके थे; क्योंकि वे यह बात अच्छी तरह समझ गये थे कि दमनकारी कानूनों और प्रतिबंधों के विरोध में प्रप्रतिनिधिमंडल या निवेदन पत्र नस्ल परस्त गोराशाही की सेवा में भेजना बेकार व बेमानी है उन्होंने ट­ांसवाल में बसे भारतीयों पर अनुमति-पत्र (पास) साथ रखने का नियम थोपे जाने का विरोध और दमनकारी कानूनों और नियमों का उल्लंघन करने का निश्चय कर लिया और एक जबरदस्त प्रतिरोध आंदोलन का नेतृत्व किया, जिसमें ट­ांसराल निवासी भारतीय पुरुषों में से लगभग एक तिहाइ जेल में पहुंच गये थे



उससे पहले ही गांधी का अखबार ‘इंडियन ओपिनियन’ ‘धरती के बेटों’ अथात् अफ्रीकियों पर गोराशाही के ब़ढते दमन का विरोध करने लगा था 18 मइ 1908 को जोहानिसबग के वाइएमसीए सभागार में हुइ एक जनसभा में उन्होंने भावी दषिाण अफ्रीका के संबंध में अपने सपने का वणन इन शब्दों में किया था, ‘अगर हम भविष्य में झांकें तो हमें जो विरासत छोड़नी है वह यह होगी कि तमाम जुदा-जुदा नस्लें घुल-मिल जायें और एक ऐसी संस्कृति का निमाण करें, जिस प्रकार की संस्कृति के दशन दुनिया ने पहले कभी नहीं किये’ मगर अल्पसंख्यक बोअरों और अंगरेजों का सपना कुछ और ही था वे दषिाण अफ्रीका को संघ राह्लय बनाना और उसे गोरों के मुल्क की शक्ल देना चाहते थे, जिसमें वहां की बहुसंख्यक आबादी केवल गोरों की जरूरतें पूरी किया करे अफ्रीकी नेताओं की भांति ही गांधी ने भी इस पैशाचिक योजना के भावी परिणामों को भांप लिया था और प्रस्तावित संघ राह्लय को दषिाण अफ्रीका की ‘अश्वेत आबादी के विरुद्ध संगठन’ का नाम दिया था



जब ब्रिटेन ने दषिाण अफ्रीकी संघ राह्लय गठित करने और अफ्रीकियों तथा मिश्र नस्ल (कलड) के लोगों की अपीलों और विश्वास को धता बताते हुए, दषिाण अफ्रीका के शासन की बागडोर अल्पसंख्यक गोरों को सौंप देने की मंजूरी दे दी, तो जोहानिसबग के चार अफ्रीकी मुख्तारों ने अफ्रीकियों के हितों के रषाथ एक राष्ट­ीय महासभा कायम करने का उद्देश्य से तमाम अफ्रीकी संगठनों का समावेश बुलाने का फैसला किया इसमें पहल की थी पिकस्ले के इजाका सेमे नाम के अफ्रीकी सह्लजन ने सेमे गांधी के फीनिक्स आश्रम के निकट ही इनांडा में जन्मे थे और निश्चय ही वे गांधी से परिचित रहे होंगे, क्योंकि अपनी समस्त शक्ति निष्क्रिय प्रतिरोध आंदोलन को अपित कर देने का निश्चय करने से पहले गांधी जोहानिसबग में ही वकालत करते थे



गांधी को ताल्सताय के लिखे आखिरी पत्र का रूसी से अंगरेजी में अनुवाद करने वाली महिला पाउलिन पोड्लाशुक के संस्मरणों से हाल में यह बात सामने आयी है कि 1911 में सेमे ने ताल्सताय फाम आकर गांधी से मुलाकात और लंबी बातचीत की थी, जिसके दौरान गांधी ने भारतीयों के निष्क्रिय प्रतिरोध आंदोलन का मम सेमे को समझाया था 1911 में 19 जुलाइ को गांधी के अखबार ‘इंडियन ओपिनियन’ ने ऊपर बताये अफ्रीकी समावेश की तैयारियों की प्रगति के बारे में सेमे के साथ हुइ बातचीत की खबर दी समावेश 8-12 जुलाइ 1912 को ब्लोम फ्रांटेन में हुआ और उसमें ‘साउथ अफ्रीकन नेटिव नेशनल कॉन्फ्रेंस’ की स्थापना हुइ, जिसका नाम आगे चलकर ‘अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस’ कर दिया गया नाताल के निवासी रेवरैंड जॉन लांगाबिलेले ड्यूबे को उसका अध्यषा चुना गया, हालांकि वे उस समावेश में उपस्थित नहीं थे (ड्यूबे का अचेहलांगे इंडस्टि­यल स्कूल गांधी के फीनिक्स आश्रम के निकट ही था) ड्यूबे ने साउथ अफ्रीकन नेटिव नेशनल कांग्रेस के मुखियाओं व अन्य महानुभावों को पत्र के जरिये धन्यवाद दिया और पत्र को अपने अखबार ‘इलांगे लासे नाल’ में दो फरवरी के अंक में छापा इस पत्र को ‘इंडियन ओपिनियन’ ने 10 फरवरी के अंक में ‘अफ्रीका का जागरण’ (द एवेकनिंग ऑफ अफ्रीका) शीषक से छापा और ‘घोषणापत्र’ कहा



जब दषिाण अफ्रीकी संसद में नेटिव्स लैंड एक्ट (देशीय भूमि अधिनियम) पारित हुआ, गांधी ने कड़ा विरोध किया ‘इंडियन ओपिनियन’ ने एक संपादकीय में घोषित किया कि ‘संघीय संसद में नेटिव्स लैंड एक्ट के पारित होने से लोग भौंचक्के रह गये हैं सचमुच अब अन्य सभी प्रश्न, जिनमें भारतीयों का प्रश्न भी शामिल है, देशीयों (नेटिव्स) के महाप्रश्न के आगे महत्वहीन हो जाते हैं यह देश जन्म से देशीयों का है और जमीन जब्ती का यह कानून (वस्तुत: यह जब्ती से कुछ भी कम नहीं है) गंभीर समस्याओं को जन्म दे सकता है’

1913 दषिाण अफ्रीका में अफ्रीकियों, मिश्र नस्ल वालों (कलड) और भारतीयों के निष्क्रिय प्रतिरोध का वष भी रहा उस वष जून में अफ्रीकी और मिश्र नस्ल की औरतों ने ओरेंज फ्रीस्टेट में उस नये कानून के खिलाफ निष्क्रिय प्रतिरोध शुरू किया, जिसके तहत अनुमति-पत्र (पास) अपने साथ रखना ियों के लिए अनिवाय कर दिया गया था साउथ अफ्रीका ने नेटिव नेशनल कांग्रेस ने उस आंदोलन का पूण समथन किया और अंत में सरकार को औरतों के लिए अनुमति-पत्र का नियम उठा लेना पड़ा सितंबर 1913 में भारतीय समुदाय ने यह निष्क्रिय प्रतिरोध आरंभ किया था

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