Tuesday, February 21, 2012

ईरान पर भारत की दुविधा


ईरान पर भारत की दुविधा
(ईरान से संबंधित हाल के घटनाक्रम को भारत के लिए सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण मान रहे हैं सी. उदयभाष्कर)
पिछले एक सप्ताह के घटनाक्रम के कारण ईरान ने अपनी ओर ध्यान आकृष्ट कराया है-भारत के स्तर पर भी और वैश्विक स्तर पर भी। भारत के सामरिक गणित में ईरान की प्रासंगिकता उससे कहीं अधिक है जितनी सामान्य तौर पर नजर आती है। इस घटनाक्रम को देखना-समझना जरूरी है। 13 फरवरी को नई दिल्ली के अत्यंत सुरक्षित समझे जाने वाले केंद्रीय इलाके में इजरायली दूतावास की एक कार पर स्टिकर बम के जरिए हमला किया गया। घटनास्थल प्रधानमंत्री निवास के एकदम करीब था। इस हमले को एक आतंकी कार्रवाई के रूप में देखा जा रहा है। मोटरसाइकिल पर सवार हमलावर भाग निकलने में कामयाब रहा। जांच एजेंसियां अभी भी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी हैं। उसी दिन जार्जिया की राजधानी तिब्लिसी में इजरायली संपत्ति को निशाना बनाने की कोशिश की गई और अगले दिन ऐसी ही एक कोशिश बैंकाक में हुई। इजरायल का आरोप है कि इन हमलों के पीछे ईरान समर्थित आतंकी गुट हिजबुल्ला का हाथ है। अपेक्षा के अनुसार तेहरान ने इजरायली दावे को खारिज कर दिया और उस पर यह आरोप मढ़ दिया कि ईरान को बदनाम करने के लिए इजरायल ही यह सब करवा रहा है। पूरे घटनाक्रम से ईरान के नाभिकीय कार्यक्रम पर दुनिया की बेचैनी फिर से बढ़ गई है। भारतीय मीडिया ने स्टिकर बम हमले की अपने-अपने ढंग से व्याख्या की। उदाहरण के लिए यह कहा गया कि अरब-इजरायल-ईरान तनाव भारत तक आ गया है। इसके बाद 15 फरवरी को ईरान ने अपनी नाभिकीय क्षमता और इरादों के संदर्भ में एक नाटकीय घोषणा कर डाली। जिस समय तेहरान में वैज्ञानिक रिसर्च रिएक्टर में समारोहपूर्वक फ्यूल रॉड लगा रहे थे तब ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद भी वहां उपस्थित थे। इस अवसर पर उनकी यह घोषणा पूरे विश्व में सुर्खियों में रही कि ईरान आधुनिकतम पीढ़ी की हाई स्पीड सेंट्रीफ्यूज के उत्पादन में माहिर हो चुका है। ध्यान रहे इन सेंट्रीफ्यूज का इस्तेमाल यूरेनियम संव‌र्द्धन में किया जाता है। वह यह कहना भी नहीं भूले कि अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिमी दुनिया द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद ईरान ने नाभिकीय मामले में एक हद तक आत्मनिर्भरता हासिल कर ली है। एक बार फिर भारतीय मीडिया ने इस खबर को इस आशंका के साथ प्रमुखता दी थी कि ईरान ने इजरायल और अमेरिका को अपने ऊपर हमले के लिए छेड़ दिया है। यह सही है कि अमेरिका और उसके सहयोगी ईरान के नाभिकीय कार्यक्रम को लेकर बहुत सख्त मुद्रा अपनाए हुए हैं, लेकिन ईरान की इस घोषणा को वाशिंगटन ने बहुत अधिक महत्व नहीं दिया। इस पूरे घटनाक्रम के बीच इस्लामाबाद ने 16 फरवरी यानी गुरुवार को एक सम्मेलन का आयोजन किया, जिसमें अफगानी राष्ट्रपति हामिद करजई, अहमदीनेजाद और पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी शरीक हुए। सम्मेलन का एजेंडा था-अफगानिस्तान में स्थिरता लाने के तरीकों की खोज और ईरान से पाकिस्तान गैस पाइप लाइन का मार्ग प्रशस्त करना। स्थिति इसलिए और अधिक जटिल नजर आ रही है कि इस घटनाक्रम में नई दिल्ली को इजरायल और ईरान के साथ अपने द्विपक्षीय संबंधों में संतुलन को कायम करना है। भारत मौजूदा समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य है और इजरायल ने औपचारिक रूप से नई दिल्ली से संपर्क कर यह कहा है कि वह आतंकवाद को समर्थन देने के कारण ईरान के खिलाफ एक प्रस्ताव को प्रायोजित करे। स्पष्ट है कि ईरान तीन कारणों से ध्यान आकर्षित कर रहा है। आतंकवाद के कारण (जैसा कि इजरायल और अमेरिका ने आरोप लगाया है), गैर कानूनी तरीके से नाभिकीय प्रसार के कारण और तीसरा कारण है-अफगान मुद्दा। इन्हीं तीन कारणों के चलते मौजूदा घटनाक्रम पर भारत की प्रतिक्रिया और संबंधित विदेश नीति की दुविधा को केवल इजरायल अथवा ईरान को समर्थन देने की सामान्य कसौटी के आधार पर नहीं देखा जाना चाहिए। एक ओर इजरायल भारत के रक्षा उद्योग को मिलने वाले बेशकीमती समर्थन के कारण हमारी सामरिक गणित में अत्यंत महत्वपूर्ण है वहीं ईरान अपने प्रचुर तेल भंडार के कारण विशेष महत्व रखता है। ध्यान रहे, भारत अपना 12 प्रतिशत तेल ईरान से ही प्राप्त करता है। इसके अतिरिक्त ईरान का भूगोल और इतिहास भी भारत के लिए विशेष महत्व रखता है। भारत और पाकिस्तान के बीच जैसे संबंध हैं उसे देखते हुए ईरान की राजनीतिक तौर पर ही अनदेखी नहीं की जा सकती, खासकर यह देखते हुए कि मध्य एशिया और अफगानिस्तान के लिए वह संपर्क मार्ग भी उपलब्ध कराता है। नाभिकीय मुद्दे पर भारत जरूर अमेरिका की इस चिंता से सहमत है कि नाभिकीय क्षमता संपन्न्न ईरान इस क्षेत्र के हित में नहीं है, लेकिन नई दिल्ली तेहरान को नाभिकीय प्रसार संधि की बाध्यताओं से बांधने के अमेरिकी तरीके से सहमत नहीं है। आतंकवाद, विशेषकर हिजबुल्ला को मिलने वाली ईरानी समर्थन के मुद्दे पर भारत के लिए चुनाव आसान नहीं है। भारत कुछ देशों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से चिंतित है। 13 फरवरी को हुए हमले के संदर्भ में यह जो सामने आ रहा है कि इसमें हिजबुल्ला-ईरान का हाथ है उसकी क्या नई दिल्ली अनदेखी कर सकती है? भारत की चिंता शिया-सुन्नी टकराव को लेकर भी है। भारत के सऊदी अरब और पूरे खाड़ी क्षेत्र से नजदीकी संबंध हैं। इसके अतिरिक्त अमेरिका तेल संपन्न अरब देशों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध रखता है। इसके बदले में अरब देशों की भारत से कुछ अपेक्षाएं हैं। इस परिप्रेक्ष्य में सीरिया के मसले पर भारतीय मत पर अनेक अरब देशों की गहन निगाहें लगी हुई हैं। सच यह है कि ईरान भारत में एक घरेलू राजनीतिक मुद्दा बन सकता है, जैसा कि अतीत में हुआ है। (लेखक सामरिक मामलों के विशेषज्ञ हैं

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